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शिखर पर ध्वजा भी उन्हीं ने चढ़ाई। बृहदशान्ति स्नात्र भी पढ़ाया तथा उसी दिन नौकारसी का तथा छत्तीस कौम में प्रसादी देने का भी लाभ उन्होंने लिया । श्रीसंघ की ओर से सम्मान समारोह रहा। पूज्यपाद प्राचार्य म. सा. के सदुपदेश से 'नूतन उपाश्रय-जैन भवन' बनाने का श्रीसंघ ने निर्णय किया। उसमें 'व्याख्यान हॉल' श्रीमान् देवीचन्दजी की ओर से बनाने की जाहेरात हुई।
* पौष [महा] वद ६ शनिवार दिनांक २८-१-८६ के दिन प्रातःकाल में श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ जिनमन्दिर का द्वारोद्घाटन हुआ। दोपहर में सतरहभेदी पूजा पढ़ाई गई। स्वामीवात्सल्य हुआ। ___ इस तरह फतहनगर में 'प्रतिष्ठा-महोत्सव' की शासनप्रभावना पूर्वक पूर्णाहुति हुई । ET मेवाड़ से मारवाड़ तरफ विहार
जैनधर्मदिवाकर-शासनरत्न - तीर्थप्रभावक - मरुधरदेशोद्धारक परमपूज्य आचार्यदेव श्रीमद् विजय सुशील सूरीश्वरजी म. सा. ने फतहनगर में नूतन श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ जिनमन्दिर की प्रतिष्ठा का कार्य निर्विघ्न पूर्ण करके वहाँ से मारवाड़ तरफ विहार किया।
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