SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 182
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पूर्ववत् बाजते-गाजते श्रीमान् प्रकाशचन्दजी चतुर के घर पर पधारे। वहाँ पगलियाँ होने के पश्चाद् ज्ञानपूजन एवं मांगलिक प्रवचन हुआ। अन्त में सर्वमंगल के बाद श्रीफल की प्रभावना हुई। जिनमन्दिर में नवग्रहादि पाटलापूजन विधिपूर्वक हुआ। ____* पौष [महा] वद ४ गुरुवार २६-१-८६ के दिन चैत्याभिषेक अष्टादशाभिषेक तथा ध्वज-दण्ड-कलशाभिषेक विधिपूर्वक हुआ। उसी दिन रथ-हाथी-घोड़े-बैन्ड आदि युक्त जलयात्रा का भव्य जुलूस-वरघोड़ा निकाला । * पौष [महा] वद ५ शुक्रवार दिनांक २७-१-८६ के दिन शुभ लग्न मुहूर्त में नूतन जिनमन्दिर में मूलनायक श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ आदि जिनबिम्बों की, यक्षयक्षिणी की तथा ध्वज-दण्ड-कलशारोपण इत्यादि की महामंगलकारी प्रतिष्ठा परम शासन प्रभावना पूर्वक पूज्यपाद आचार्य म. सा. की पावन निश्रा में निर्विघ्न हुई। वांकली निवासी श्रीमान् पृथ्वीराजजी ने मूलनायक श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ की मूत्ति बिराजमान की। ( १६ )
SR No.002338
Book TitleJinmandiradi Lekh Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri, Ravichandravijay
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1997
Total Pages220
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy