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( १३७ ) एक साधु तथा साध्वी भी,
श्रावक - श्राविका प्रख्यात । संघ प्राज्ञायुक्त जानना,
अवशेष अछि संघात ।। ४ ।। आज्ञा ए तप-संयम कहा,
जो आगमशास्त्र प्रमाण । प्राज्ञा विरण सभी निष्फल,
सुशील शिशु शून्य जाण ।। ५ ।।
? * * सनातन सत्य है * *
[१] 'तमेव सच्चं निस्संकं जं जिणेहिं पवेइयं ।'
वही निःशङ्क सत्य है, जो जिनेश्वर भगवन्तों ने कहा है।
[२] 'प्राज्ञाराद्धा विराद्धा च, शिवाय च भवाय च ।'
श्रीजिनेश्वरदेव की प्राज्ञा की आराधना से मोक्ष की प्राप्ति है, तथा विराधना से संसार में भटकना पड़ता है अर्थात्-परिभ्रमण करना पड़ता है ।