________________
( ११५ )
है। प्रत्येक सभा के तीन द्वार होते हैं। इसलिये पाँच सभा के मिलकर के पन्द्रह द्वार होते हैं। इन प्रत्येक द्वार पर श्रीजिनेश्वर भगवान के चौमुख बिम्ब होते हैं। इसलिए पांच सभा की अपेक्षा कुल साठ बिम्ब हो जाते हैं।
प्रत्येक देवलोक में विद्यमान जिनचैत्य भी तीन द्वार वाला ही होता है। इसलिए इसमें कुल बारह जिन बिम्ब होते हैं। तथा चैत्य के गभारा में १०८ जिन बिम्ब होते हैं। सब मिलकर जिनचैत्य में रहे हुए जिन बिम्बों की कुल संख्या १२० की होती है। सभा के साठ (६०) तथा चैत्य के एक सौ बीस (१२०) मिलकर कुल एक सौ अस्सी (१८०) जिनबिम्ब हो जाते हैं ।
___ नव ग्रैवेयक में तथा पांच अनुत्तर विमानों में सभाएँ नहीं होती हैं। इसलिए इनमें एक सौ बीस (१२०) जिनबिम्ब ही हैं।
(२) पाताल लोक में विद्यमान शाश्वत जिन-चैत्य तथा शाश्वत जिनविम्ब इस प्रकार हैं