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( ११० ) बाह्य अभ्यंतर तप उजमाल ,
ते मुनि वंदु गुणमणिमाल । नित-नित उठी कीत्ति करूं ,
'जीव' कहे भवसागर तरूँ ॥ १५ ॥ * भावार्थ-इस तीर्थ-वंदना में तीन लोक के अन्दर माये हुए शाश्वत-प्रशाश्वत चैत्यों (मन्दिरों) तथा उनके अन्दर रही हुई मूत्ति-प्रतिमाओं की संख्या बताई है, तदुपरान्त इन सभी को नमस्कार-वन्दन करने में पाये हैं।
इस 'तीर्थ-वन्दना' के कर्ता मुनिराजश्री जीवविजय जी महाराज हैं।