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________________ * पाँच अभिगम * अभिगम के पाँच प्रकार इस प्रकार है (१) अपने पास के खाद्य पदार्थ, सूघने के पुष्प-फूल, अथवा अपने देह पर धारण की हुई पुष्प-फूल की माला इत्यादि सचित्त द्रव्य छोड़कर जिनमन्दिर-चैत्य में प्रवेश करना। ___यह भी एक प्रकार का प्रभुजी का प्रादर और विनय है। पाँच अभिगमों में यह पहला अभिगम है । (२) पहने हुए प्राभरण, वस्त्र, पात्र तथा नाणां न छोड़ना, यह दूसरा अभिगम है । (३) मन की एकाग्रता रखनी, यह तीसरा अभिगम है। (४) दोनों छोरों पर दशियों वाला और बीच में न सँधा हुआ प्रखण्ड उत्तरासङ्ग [खेस] रखना, यह चौथा अभिगम है । (५) वीतराग विभु-प्रभुजी की मूत्ति देखने के साथ 'नमो जिणाणं' कह कर अञ्जलिपूर्वक शिर-मस्तक नमाकर नमस्कार-प्रणाम करना, यह पाँचवाँ अभिगम है ।
SR No.002338
Book TitleJinmandiradi Lekh Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri, Ravichandravijay
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1997
Total Pages220
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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