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________________ * भावः * [ १६ ] भव्यो लभेत भावेन, शिवशर्माणि निर्णयात् । इलाचीनन्दन इव, परिग्रहधरोऽपि सन् ॥ १६ ॥ पदच्छेदः-भव्यः लभेत भावेन शिवशर्माणि निर्णयात् इलाचीनन्दन इव परिग्रहधरः अपि सन् । . अन्वयः-परिग्रहधरः अपि सन् भव्यः निर्णयात् इलाचीनन्दन इव भावेन शिवशर्माणि लभेत । शब्दार्थः-परिग्रहं धरतीति परिग्रहधरः परिग्रह रखने वाला, अपि=भी, सन् होता हुआ, भव्यः= भविकजन, निर्णयात्=निर्णय करने से, इलाचीनन्दन इव इलाचीपुत्र की तरह, भावेन = शुद्ध भावना से, शिवशर्माणि मोक्ष के सुखों को, लभेत = प्राप्त करे । श्लोकार्थः-परिग्रह को धारण करते हुए भी भव्यजन शुद्ध निर्णय करने से इलाचीपुत्र की तरह शुद्ध भाव से मोक्ष के सुखों को प्राप्त करे। संस्कृतानुवादः-परिग्रहधरोऽपि सन् भव्यो जनः निर्णयात् इलाचीपुत्र इव शुद्धभावेन मोक्षस्य सुखानि प्राप्नुयात् ॥ १६ ॥ धर्मो-२ ( १७ )
SR No.002337
Book TitleDharmopadesh Shloka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1993
Total Pages144
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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