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________________ * विनयी * [ ११२ ] विनयी धर्मयोग्यः स्याद्, बुद्धयादिगुणभाजनम् । सहकारफलाऽऽकृष्टि-विद्यावाञ्छणिको यथा ॥ ११२ ॥ पदच्छेदः-विनयी धर्मयोग्य: स्यात् बुद्धयादिगुणभाजनम्, यथा सहकारफलाऽऽकृष्टि - विद्यावान् श्रेणिकः जातः । अन्वयः-बुद्धयादिगुणभाजनम् विनयी धर्मयोग्यः . स्यात् यथा सहकारफलाऽऽकृष्टि - विद्यावान् श्रेणिकः गुणभाजनम् जातः । शब्दार्थः-बुद्धयादिगुरणभाजनम् =बुद्धि आदि गुणों का पात्र, विनयी विनयशील मानव, धर्मयोग्यः धर्म के लिए योग्य, स्यात् होवे, यथा जैसे, सहकारफलाऽऽकृष्टि विद्यावान पाम्रवृक्ष के फल को आकर्षित करने की विद्यावाला, श्रेणिकः श्रेणिक राजा, गुणभाजनम्=गुणों का पात्र, जातः=हुआ। ___ श्लोकार्थः-बुद्धि आदि गुणों का पात्र विनयी मानव धर्म के योग्य होता है। जैसे अाम्रवृक्ष के फलों को आकर्षित करने की विद्या वाला श्रेणिक राजा गुणों का भाजन बना। ___ संस्कृतानुवादः-बुद्धयादिगुणभाजनं विनयी मानवो धर्मयोग्यो भवेत् यथा आम्रवृक्षफलाकृष्टि - विद्यानाम् श्रेणिको नृपतिः गुणभाजनं जातः ।। ११२ ।। धर्मो-८ ( ११३ )
SR No.002337
Book TitleDharmopadesh Shloka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1993
Total Pages144
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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