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प्र वन्दन हो गुरु चरणे
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शासन के साम्राज्य में, तपे सूर्य सा तेज, तीर्थोद्धार किये कई, सोकर सूल की सेज । धर्मधुरन्धर सद्गुरु, मंगलमय है नाम, नेमिसूरीश्वर को करू, वन्दन आठों याम ।। १ ।।
साहित्य के सम्राट् हो, शास्त्रविशारद जान, स्वयं शारदा ने दिया, जैसे गुरु को ज्ञान । व्याकरणे वाचस्पति, काव्यकला अभिराम, श्री लावण्य सूरीश्वरा, वन्दन आठों याम ।। २ ।।
शब्दकोश के शहंशाह, सरिता शास्त्र समान, कवि दिवाकर ने किया, काव्यशास्त्र का पान । ग्रन्थों की रचना में राचे, सरस्वती के धाम, दक्ष सूरीश्वर को करू, वन्दन आठों याम ।। ३ ।। शान्त सुधारस मृदुमनी, राजस्थान के दीप, मरुधरोद्धारक सत्कवि, तुम साहित्य के सीप । कविभूषरण हो तीर्थप्रभावक, नयना है निष्काम सुशील सूरीश्वर को करू, वन्दन आठों याम ॥ ४ ॥ ****