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स्याद्वादबोधिनी-२१८
सद्भाव व समन्वय का आलोक भरने का सफल प्रयत्न किया है। आप में जिनशासन-सेवा की अटूट लगन है तथा आप अपने गुरुदेव के द्वारा दर्शाये मार्ग पर चलने में ही अपना अहोभाग्य मानते हैं । एकता के महान पुजारी !
प्रापने जैन समाज को एकता के सूत्र में बाँधने के लिए अपनी समस्त शक्ति, बुद्धि और जीवन समर्पित कर दिया। पाप की सदैव प्रबल भावना रही है कि जैन समाज का परस्पर पूर्णतया संगठन हो और सभी भगवान महावीर स्वामी के एक झण्डे के नीचे एकत्र होकर समाज को समुन्नत करें। करुणा और ज्ञान के सिन्धु !
प्राणी मात्र के दुःख से द्रवित हो उठनेवाला आपका हृदय दया और करुणा का अनन्त सागर है। आपका हृदय हमेशा जनकल्याण के लिए योजनारत रहता है । आप की प्रेरणा से देश के कोने-कोने में अनेक तरह के रचनात्मक कार्य समाज-उत्थान के लिए संचालित होते