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( XII )
भाषानुवाद, भावार्थ-विवेचन की भाषा प्राञ्जल तथा विषय को स्पष्ट करने में सक्षम है । आशा है, तत्त्वजिज्ञासु इस सत् प्रयास से सुगम रीति से अधिगम प्राप्त कर लाभान्वित होंगे । श्राचार्यप्रवरश्री सुशील सूरीश्वरजी महाराज की यह रचनां जैनदर्शन की शोभा है । आपका यह उत्कृष्ट अवदान शतश: अनुमोदनीय एवं प्रशंसनीय है ।
यह ग्रन्थरत्न उपादेय, पठनीय, मननीय तथा संग्रहणीय है । - शिवमस्तु सर्वजगतः ।
कुलवन्ती कुञ्ज १०/४३० नन्दनवन जोधपुर
品
विदुषां वशंवदः शम्भुदयाल पाण्डेयः व्याख्याता-संस्कृत