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________________ ( I ) अन्ययोगव्यवच्छेदिका तथा अयोगव्यवच्छेदिका के श्लोक प्रमाणमीमांसावृत्ति, योगशास्त्रवृत्ति आदि में उद्धृत हैं। अतः ये द्वात्रिंशिकायें पूर्व की रचनाएँ हैं-यह प्रमाणित होता है । ध्यातव्य है कि अन्ययोगव्यवच्छेदिका के अनेक श्लोक माधवाचार्यकृत सर्वदर्शनसंग्रह में भी उद्धृत हुए हैं । यशस्वी टीकाकार : मल्लिषेण विद्वद्रत्नमाला में मल्लिषेण नामक दो विद्वान् प्राचार्यों का उल्लेख है, जो मूलतः दिगम्बर आम्नाय से सम्बद्ध हैं। एक मल्लिषेण उभयभाषा चक्रवर्ती कहे जाते थे। आपकी महापुराण, नागकुमार महाकाव्य तथा सज्जनचित्तवल्लभ नामक ग्रन्थत्रयो अद्यावधि उपलब्ध है। 'मलधारिन्' मल्लिषेण दूसरे प्राचार्य थे । वे शक संवत् १०५० में फाल्गुन कृष्णा तृतीया के दिन श्रवणबेलगुल में समाधिस्थ हुए। प्रवचनसार टीका, पंचास्तिकाय टीका, ज्वालिनीकल्प, पद्मावतीकल्प, वज्रपंजरविधान, ब्रह्मविद्या तथा प्रादिपूराण नामक 'ग्रन्थ' भी मल्लिषेण प्राचार्य-विरचित प्रसिद्ध हैं किन्तु वे कौन से मल्लिषेण हैं ? इस सन्दर्भ में ऐतिहासिक निर्णय अभी विसंवाद का विषय है। स्पष्ट है कि मल्लिषेण नामक अनेक आचार्य हुए हैं । स्याद्वादमंजरी की प्रशस्ति इस प्रकार हैनागेन्द्रगच्छगोविन्दवक्षोऽलंकारकौस्तुभाः । ते विश्ववन्द्या नंद्यासुरुदयप्रभसूरयः॥ श्रीमल्लिषेणसूरिभिरकारि तत्पदगमनदिनमणिभिः । वृत्तिरियं मनुरविमितशकाब्दे दीपमहसि शनौ ॥ श्रीजिनप्रभसूरीणां साहाय्योद्धिन्नसौरभा। श्रुतावुत्तंसतु सतां वृत्तिः स्याद्वादमंजरी॥
SR No.002335
Book TitleSyadwad Bodhini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinottamvijay Gani
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1997
Total Pages242
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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