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भव्य वरघोड़ा भी निकला। प्रातः नाश्ता एवं दो टंक का स्वामीवात्सल्य हुआ।
(८) वैशाख सुद ४ शनिवार दिनांक २-५-८७ के दिन नवग्रहादि पाटलापूजन, लघुनन्दावर्त्तपूजन तथा ध्वजदण्ड, कलशाभिषेक आदि की विधि हुई। श्री अष्टापदजी तीर्थ की पूजा पढ़ाई गई। शानदार वरघोड़ा निकला। प्रातः नाश्ता एवं दो टंक का स्वामीवात्सल्य हुआ ।
(६) वैशाख सुद ५ रविवार दिनांक ३-५-८७ के दिन नूतन जिनप्रासाद अभिषेक, अठारह अभिषेक तथा देवीपूजन इत्यादि की विधि हुई। अन्तराय कर्म निवारण की पूजा पढ़ाई गई। जलयात्रा का शानदार भव्य जुलूस-वरघोड़ा निकाला गया। शा. फतेचन्द मूलचन्दजी, शा. भागचन्द चुन्नीलालजी तथा शा. बाबूलाल चुन्नीलाल जी--इन तीनों के घर पर परम पूज्य प्राचार्य म. सा. चतुर्विध संघ और बेन्ड सहित पगलां करने के लिये पधारे। वहाँ पर ज्ञानपूजन एवं मंगल प्रवचन के पश्चात् संघपूजा हुई। प्रात: नाश्ता एवं दो टंक का स्वामीवात्सल्य हुआ।
(१०) वैशाख सुद ६ सोमवार दिनांक ४-५-८७ के दिन प्रातः शुभलग्नमुहूर्त में मूलनायक श्रीधर्मनाथादि
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