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* चौथे गणधर श्रीव्यक्तजी ॐ 'पंचभूत के अस्तित्व में संदेह-संशय'
इस तरह श्रीइन्द्रभूति, श्रीअग्निभूति तथा श्रीवायुभूति इन तीनों को अपने-अपने छात्र-परिवारों के साथ दीक्षित सुनकर चौथे श्रीव्यक्त नाम के विप्र ने भी विचार किया'जिनके श्रीइन्द्रभूति आदि भी शिष्य हो गए वे मेरे भी पूजनीय हैं। इसलिये अब मैं भी शीघ्र उनके पास जाऊँ और अपने सन्देह-संशय को दूर करूं।'
इस तरह निर्णय करके श्रीव्यक्त विप्रपण्डित अपने पाँच सौ शिष्यों सहित शीघ्र सर्वज्ञ विभु श्रीमहावीर भगवान के पास आये। उसी समय भगवान ने भी मधुरवाणी से उसके नाम-गोत्र का उच्चारण करते हुए कहा
"पञ्चसु भूतेषु तथा, सन्दिग्धं व्यक्तसंज्ञकं विबुधम् । ऊचे विभुर्यथास्थं, वेदार्थ किं न भावयसि ॥
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