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१५. ज्ञान : गृहस्थावस्था में चौदह विद्या के
पारगामी तथा दीक्षावस्था में सम्यग्मतिज्ञानादि चार ज्ञान के बाद
पंचम केवलज्ञान । १६. ज्ञान का : गृहस्थावस्था में 'सर्वज्ञोऽहम्' अर्थात्
अभिमान _ 'मैं सर्वज्ञ हूँ ' ऐसा अभिमान था। १७. संशय : अपने अन्तःकरण में 'क्या देवता
है ?' अर्थात् 'देव है कि नहीं ?'
यह संशय था। १८. शिष्यगण : ३५० । १६. गृहस्थावस्था : ६४ वर्ष उपरान्त संसार में अर्थात्
गृहस्थावस्था में रहे। २०. दीक्षा : ६५ वें वर्ष में जैनधर्म की पारमेश्वरी
प्रव्रज्या (दीक्षा) अपने ३५० शिष्यों के साथ अपापापुरी के महसेन वन में श्रमण भगवान महावीर परमात्मा से
ग्रहण की। २१. दीक्षा तिथि : वैशाख सुदी (११) ग्यारस ।
(उसी दिन श्रमण भगवान महावीर परमात्मा के सातवें शिष्य बने और ( ८२ )