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मतिज्ञानादि चार ज्ञान के बाद पंचम
केवलज्ञान । १६. ज्ञान का : गृहस्थावस्था में 'सर्वज्ञोऽहम्' अर्थात्
अभिमान _ 'मैं सर्वज्ञ हूँ' ऐसा अभिमान था। १७. संशय : 'बन्ध-मोक्ष हैं ? अर्थात् बन्ध और
मोक्ष हैं कि नहीं ?' यह संशय था। १८. शिष्यगण : ३५० । १६. गृहस्थावस्था : ५३ वर्ष तक संसार में अर्थात्
गृहस्थावास में रहे। २०. दीक्षा : ५४ वें वर्ष में जैनधर्म की
पारमेश्वरी प्रव्रज्या (दीक्षा) अपने ३५० शिष्यों सहित अपापापुरी के महसेन वन में श्रमण भगवान
महावीर परमात्मा से ग्रहण की। २१. दीक्षा तिथि : वैशाख सुदी (११) ग्यारस ।
(उसी दिन श्रमण भगवान महावीर परमात्मा के छठे शिष्य बने और प्रभु से 'उवन्नेइ वा- विगमेइ वाधुवेइ वा' रूप त्रिपदी सुन कर छठे गणधर हुए।
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