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मोक्ष में आज भी उनकी सादि अनंत स्थिति प्रवर्त रही है और भविष्य
में भी सर्वदा ऐसी रहेगी। * [विशेष-(१) यही श्री सुधर्मास्वामीजी गणधर पहले उदय के बीस प्राचार्यों में मुख्य युगप्रधान हुए। ये ४२ वर्ष (अन्य श्री इन्द्रभूत्यादि दस गणधरों से अधिक समय) पर्यन्त छद्मस्थ काल में ३० वर्ष तक प्रभु श्री महावीर स्वामी की सेवा में रहे और १२ वर्ष तक श्रीगौतमस्वामी महाराज की सेवा में रहे ।
(२) श्री महावीर परमात्मा ने अपनी विद्यमानता में हो जब ग्यारह गणधरों को द्रव्य-गुण-पर्याय का प्रतिपादन करने वाले तीर्थ को योग्य जीवों को पमाडने की अनुज्ञा करते हुए सभी के मस्तक पर दिव्य चूर्ण डाला, उसी समय दीर्घ आयुष्यवन्त श्री सुधर्मास्वामीजी की समस्त मुनिगण की अनुज्ञा की।
(३) श्रमण भगवान श्री महावीरस्वामीजी की पट्टपरम्परा में सबसे पहला नाम आज भी श्री सुधर्मास्वामी गणधर का कहलाता है ।]
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