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और प्रभु से 'उवन्नेइ वा- विगमेइ वा- धुवेइ वा' रूप त्रिपदी सुन कर
पाँचवें गणधर हुए )। २२. दीक्षा-गुरु : सर्वज्ञ विभु श्रमण भगवान महावीर
परमात्मा। २३. दीक्षा के दिन : श्री इन्द्रभूति तथा श्री अग्निभूति
गुरुबन्धु आदि १० हुए। २४. दीक्षा के दिन : सहदीक्षित ५०० शिष्य ।
शिष्य-परिवार २५. दीक्षा पर्याय : ५० वर्ष तक रहा ।
(काल) २६. छद्मस्थ पर्याय : ४२ वर्ष तक रहा। २७. शास्त्ररचना : सर्वज्ञ विभु श्री महावीर परमात्मा
से त्रिपदी सुन कर अन्तर्मुहूर्त में द्वादशाङ्गी (प्राचारांग आदि बारह आगमसूत्रों) की सम्पूर्ण रचना बीज
बुद्धि द्वारा की। . २८. गुणसम्पदा : सुसंयम, ज्ञान, ध्यान, तप, विनय,
विवेक, क्रिया तथा सेवा-भक्ति ( ७४ )