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भूमिका
'श्री गणधरवाद काव्यम्' के रचयिता जैनधम दिवाकर, राजस्थान-दीपक, शास्त्रविशारद पूज्य जैनाचार्य श्रीमद् विजय सुशीलसूरीश्वरजी महाराज हैं जिन्होंने जैन वाङ्मय के प्रसिद्ध एवं लोकप्रिय पाख्यानों को सरस और सरल हिन्दी भाषा में निरूपित करके जनता को अहिंसा और प्रेम का पीयूष पिलाया है। इस महर्षि ने श्री जिनेश्वर भगवान की वाणी को अपनी रचनाओं में अभिव्यक्त करके महत् उपकार किया है जिसकी प्रशंसा करने के लिए मेरे पास न तो शब्द हैं और न शैली ही है; अल्पश्रुतं श्रुतवतां परिहासधाम ।
- श्री गणधरवाद जैन वाङ्मय का लोकविश्रुत आख्यान है जिस पर अनेकानेक जैन, जैनेतर विद्वानों ने सुन्दर एवं विशद टीकाएँ तथा भाष्य लिखे हैं।
काव्यम् का कथाप्रसंग : श्री महावीर प्रभु अपापापुरी पधारे । उसी समय उस नगरी के धनाढ्य ब्राह्मण सोमिल ने अपने विशाल यज्ञ को सम्पन्न करने के लिए इन्द्रभूति गौतम आदि ग्यारह वेदज्ञ पण्डितों को आमन्त्रित किया। उसी समय पण्डितों ने यज्ञ-मण्डप के समीप से भगवान महावीर की धर्म-सभा में जाते हुए अपार जनसमूह को देखा। इन्होंने तुरन्त निर्णय किया कि वे शास्त्रार्थ में भगवान महावीर को पराजित करेंगे। वे क्रमशः अपने ज्ञानगर्व में फूले हुए भगवान की धर्मसभा (समवसरण) में प्रविष्ट हुए। सर्वज्ञ भगवान ने न केवल उनको नाम सहित सम्बोधित किया अपितु उनके मन में शल्य के समान चुभरही शंकाओं को भी
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