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नीतिशास्त्र का उद्गम एवं विकास / 4]
धर्मों के अन्तरंग का पूर्ण परिचय कम ही लोगों को है। बहुत से लोग यह भी नहीं जानते कि भारतीयों ने क्या चिन्तन किया और क्या कहा है? जहाँ तक भारतीय नीतिशास्त्र का सम्बन्ध है, वह यूरोप और अमेरिका के लिए अधिकांशतः अज्ञात क्षेत्र है। यह जान कर अधिकांश लोगों को खुशी होगी कि ईसा युग से बहुत पूर्व भारत में सत्य, उदारता, हृदय की दयालुता, आत्मा की पवित्रता, क्षमा तथा दया के आदर्श दैनिक जीवन के सिद्धान्तों के रूप में सिखाये जाते थे।"
भारतीय नीति की विकास अवस्थाएं
भारतीय और भारतेतर विभिन्न धर्मों और उनके प्रवर्तकों के नीति सम्बन्धी विचारों की संक्षिप्त जानकारी भारतीय नीतिशास्त्र की विकास अवस्थाओं को समझने में सहायक होगी।
विकासक्रम की अपेक्षा से भारतीय नीति को पांच अवस्थाओं (stages) में विभाजित किया जा सकता है
(i) प्रागैतिहासिक नैतिक विचारधारा-इसका प्रारम्भ ऋषभदेव से पूर्व कुलकर युग की हाकार नीति से हुआ और जैन परम्परा के तेईसवें तीर्थंकर पार्श्वनाथ के युग तक विभिन्न सोपानों को पार करती हुई विकसित होती रही। नैतिक चिन्तन का यह अतिदीर्घकाल है। नीति सम्बन्धी अधिकतर प्रत्यय इस युग में प्रचलन में आ चुके थे। ___(ii) प्राचीन नैतिक चिन्तन-इसका प्रारम्भ वैदिक युग से माना जाता है। वेद, ब्राह्मण, उपनिषद्, स्मृति, पुराण आदि वैदिक परम्परा, बौद्ध परम्परा का नैतिक चिन्तन तथा संस्कृत काव्यों रामायण, महाभारत, नीति-ग्रन्थों, अन्योक्ति 1. "Although the West discovered mental India years ago and now talks quite glibly with its imagined ‘millions of Buddhists’, yet apart from some erroneous familiarity with Indian religions, there is little known in this country of what the Hindus have thought and said; as far the field of Hindu Ethics, it is terra incongnitia to Europe and America... It will be a pleasure to many and grief to none to know that truthfulness, generosity, kindness of heart, purity of soul, forgiveness and compassion were taught in India as everyday precepts long before the Christian era." --Hopkins, E. W.: Ethics of India, p. IX
-उद्धृत-डा. दिवाकर पाठक : भारतीय नीतिशास्त्र, पृष्ठ 5