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28 / जैन नीतिशास्त्र : एक परिशीलन पड़ी हैं। डा. कर्माकर' ने अपनी पुस्तक 'पुराणिक वर्ड्स आफ विज्डम' में ही एक हजार श्लोक संकलित किये हैं। ____ अठारह पुराणों में ब्रह्मपुराण, विष्णुपुराण, पद्यपुराण, शिवपुराण, भागवतपुराण, अग्निपुराण, मार्कण्डेयपुराण, गरुडपुराण और ब्रह्मांड पुराण प्रमुख हैं। नीति के प्रसिद्ध ग्रन्थ बृहस्पति तथा शौनकीय नीतिसार गरुड़ पुराण के ही अंश हैं।
पुराणों के नीति विषय-स्त्री, पंडित, सज्जन, नीच, धन, कृपण, भाग्य, सुख, दुःख, संसार, विद्या, धर्म, काल, सत्य, जीवन, मन, उद्यम, चिन्ता, शत्रु, मित्र आदि हैं। कहीं-कहीं सीधी सरल भाषा में नीति के उपदेश हैं तो कहीं उदाहरणों से उसे पुष्ट भी किया गया है। फिर भी उदाहरण-पुष्टि का प्रयास कम ही है। यहां चार उदाहरण दिये जा रहे हैं
अधमाः कलिमिच्छन्ति, संधिमिच्छन्ति मध्यमाः।
उत्तमा मानमिच्छन्ति, मानोहि महतां धनम् ॥ --(अधम (नीच) व्यक्ति कलह चाहते हैं, मध्यम व्यक्ति सन्धि की इच्छा करते हैं और उत्तम व्यक्ति मान चाहते हैं, क्योंकि मान ही सबसे बड़ा धन है।)
प्रस्तुत श्लोक में उत्तम, मध्यम और अधम व्यक्तियों की वृत्ति, प्रवृत्ति तथा उनकी हृदयगत नीति पर यथार्थ प्रकाश डाला गया है।
जलौका केवलं रक्तमाददाना तपस्विनी।
प्रमदा सर्वदादत्ते चित्तं वित्तं बलं सुखम् ॥ -(जोंक तो केवल रक्त लेती है किन्तु स्त्री तो हृदय, धन, बल और सुख-सभी कुछ ले लेती है। भाव यह है-स्त्री जोंक से भी खतरनाक हैं।)
लोकबंधुषु मेघेषु विद्युत्वच्चल सौहृदाः।
स्थैर्य न चक्रुः कामिन्यः पुरुषेषु गुणिषुष्विव ॥ -(लोकोपकारी बादलों में भी बिजलियाँ चंचल रहती हैं (स्थिर नहीं रहती), उसी प्रकार गुणी पुरुषों के सान्निध्य में भी चपल अनुराग वाली कामिनी स्त्रियाँ चंचल रहती हैं।)
1. Dr. Karmakar : Puranik Words of Wisdom, Bombay, 1947 2. डा. भोलानाथ तिवारी : हिन्दी नीति काव्य, पृष्ठ 34 3. Dr. Karmakar : Puranik Words of Wisdom, p. 21 4. Ibid, p.I
5. श्रीमद्भागवत, 10/20/17