SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 526
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जफफफफफफफफफफफफ़EEEEEEEEEEEE454 फफफफफफफफफफफफफफ55555555 प्रज्ञापूरुष आचार्य सम्राट : श्री देवे साधूता, सरलता से दीप्तिमान होती है. विद्या, विनय से शोभायमान होती है। सबके प्रति सद्भाव, समभाव और सबके लिए हित-कामना से संघनायक का पद गौरवान्वित होता है। महामहिम परम श्रद्धेय आचार्य श्री देवेन्द्र मुनि जी के साथ यदि आप ने कुछ क्षण बिताये थे और उनके विचार, व्यवहार को समझा था तो आप ने अनुभव भी किया होगा कि उक्त पंक्तियाँ उनकी जीवन-धारा पर बहती हुई वह त्रिवेणी धारा थी, जिसमें अवगाहन करके सुख, शान्ति और संतोष का अनुभव होता था। श्रूत की सतत समपासना और निर्दोष निष्काम सहज जीवनशैली, यही था आचार्य श्री देवेन्द्र मुनि जी महाराज का परिचय। छोटे-बड़े, अमीर-गरीब सभी के साथ शालीन व्यवहार, मधुर स्मित के साथ संभाषण और जन-जन को संघीय एकतासूत्र में बांधे रखने का सहज प्रयास; आचार्य श्री देवेन्द्र मुनि जी की विशेषताएँ आज भी जन मानस को आनन्द विभोर कर देती हैं। वि. सं. 1988 धनतेरस (कार्तिक कृष्णा 13) 7-11-1931 को उदयपुर में, पिता जीवन सिंह जी व माता तीजाबाई वडिया, एक अतीजात पुत्र रत्न को जन्म दिया। वि. सं. 1917, फाल्गुन शुक्ला तृतीया / मार्च 1941 को गुरुदेव उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि जी महाराज सा. के चरणों में भागवती जैन दीक्षा। वि. सं. 2049, 15 मई 1992 अक्षय तृतीया को श्रमण संघ के तृतीय पट्टधर के रुप में आचार्य पद पर प्रतिष्ठापित हुए और अपने व्याक्तित्व कृतित्व से चतुर्विध श्री संघ को गौरवान्वित किया 卐卐) 555555555 था। प्राकृत-संस्कृत, गुजराती, मराठी, हिन्दी प्रभृति भाषाओं का अधिकार पूर्ण ज्ञान तथा आगम, वेद, उपनिषद्, त्रिपिटक, व्याकरण, न्याय, दर्शन, साहित्य, इतिहास आदि विषयों का व्यापक अध्ययन, अनुशीलन और धारा प्रवाह प्रभावी लेखन। संलिखित/संपादित/प्रकाशित पस्तकों की संख्या 400 से अधिक। लगभग पैंतालीस हजार से अधिक पृष्ठों की कालजयी सामग्री। विनय, विवेक और विद्या की त्रिवेणी में सस्नात परम पवित्र जीवन चर्या, इन सबका लोकप्रिय नाम था आचार्य सम्राट श्री देवेन्द्र मुनि जी महाराज। आप का वैसाख शुक्ला / / तदनुसार दि. 26/4/1999 को उत्तकृष्ठ भावों के साथ संथारा पूर्वक बम्बई घाटकोपर में महाप्रयाण हुआ। जो समाज और राष्ट्र के लिए साधना एवं सर्जना का कल्पवृक्ष धराशाही सिद्ध हुआ। -दिनेश मुनि यूनिवर्सिटी पब्लिकेशन बी-137, कर्मपुरा, नई दिल्ली-110 015 卐yyyy ज卐93 5555फफफफफफफफफफफफफफफफफफ
SR No.002333
Book TitleNitishastra Jain Dharm ke Sandharbh me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherUniversity Publication Delhi
Publication Year2000
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy