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474 / जैन नीतिशास्त्र : एक परिशीलन
कर्म
बेकारी सबसे बुरी, निपट निराशा खान। आशा बसती कर्म , कर्म करे विद्वान।।
-नीति के दोहे
काम
रतनावलि उपभोग सौं होत विषय नहिं सांत। ज्यों-ज्यों हवि होमें अनल, त्यों-त्यों बढ़त नितांत ।।
-रत्नावली दोहा, 59
कृपण
दाता नर अरु सूम में लखिए भेद इतेक। देत एक जियतेहि हरषि, देत मरे पर एक।
-ब्रज सतसई, पृ. 40
क्रोध
कोप न करें महा सहिय, पाय खलन तै दूख। लौन सींचिकर पीडिए, तऊ मधुर रस ऊख।।
__ -दीन दयालु दृष्टान्त तरंगिणी, 51 रिस के बस ना हूजिए कीजै बात विचार। पुनि पछताए है कहा जो है जाइ विगार।
-ज्ञान ग्रन्थावली
गुण
गुण के गाहक सहस नर, बिनु गुण लहै न कोय। जैसे कागा कोकिला, शब्द सुनै सब कोय।।
___-गिरिधर कुण्ड., 27
काहूं सौ न रोष-तोष, काहूं सों न राग-दोष, काहू सों न बैरभाव काहू की न घात है। काहू सों न बकवाद, काहू सों नहीं विषाद, काहू सों न संग, न तौ कोउ पक्षपात है।