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परिशिष्ट : हिन्दी साहित्य की सूक्तियाँ / 473
आशा
तुलसी अद्भुत देवता, आसा देवी नाम। सेए सोक समर्पई, विमुख भए अभिराम ।।
-तुलसी दो., 258 ईश्वर भक्ति
कबीर हरि की भगति बिन ध्रिग जीमण संसार। धूवां केरा धौलहर जात न लागे बार।।
___-कबीर ग्रन्थ., पृ. 23 उद्योग
उद्योगी को ऊसरों में मिलता है रत्न। किसी हाल में हो नहीं जीवन रहित प्रयत्न।।
-विव्य दोहा., 671
ऋण
सब काहू को भूल के करज दीजिए नाहिं। दीजै तो ना कीजिए झगरौ आपुन माहिं।।
-जान, पन्दनामा स्वजन सखी सों, जनि करहु कबहूं ऋन व्यवहार। ऋन सौं प्रीति, प्रतीति तिय रतन होति सब छार।।
-रत्नावली दोहा., 140
एकता
सुबल सुमंत्र सुकर्म जह जहां एका सुविचार। तहं सुख संपत्ति जय सदा, उन्नति होति अपार।
ब्रज सतसई, पृ. 37
कपट
फेर न है है कपट सों जो कीजे व्यापार। जैसे हाँडी काठ की, चढे न दूजी बार।।
-वृन्द सतसई, 35