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462 / जैन नीतिशास्त्र : एक परिशीलन
(3) कुछ पुरुषों की भेंट भी अच्छी होती है और सहवास भी अच्छा होता
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(4) कुछ पुरुषों की न भेंट अच्छी होती है और न सहवास अच्छा होता
विद्या के अयोग्य
चत्तारि अवायणिज्जाअविणीए, विगइ पडिबद्धे, अविओसितपाहुडे, माई।
-स्थानांग, 4/4 चार पुरुष विद्याध्ययन के योग्य नहीं हैं-(1) अविनीत, (2) चटोरा, (3) झगड़ालू और (4) धूर्त चतुर्भगी (हितेच्छा)
अप्पणो णामं एगे पत्तियं करेइ, णो परस्स। परस्स णामं एगे पत्तियं करेइ, णो अप्पणो। एगे अप्पणो पत्तियं करेइ, परस्स वि। एगे णो अप्पणो पत्तियं करेइ णो परस्स।।
-स्थानांग, 4/3 (1) कुछ पुरुष केवल अपना ही भला चाहते हैं, दूसरों का नहीं। (2) कुछ पुरुष अपना भला न चाहकर दूसरों का भला चाहते हैं। (3) कुछ पुरुष अपना भी भला चाहते हैं, और दूसरों का भी।
(4) कुछ पुरुष न अपना भला चाहते हैं, न दूसरों का ही। बौद्ध साहित्य की सूक्तियां अप्रमाद अप्पमादो अमतंपदं, पमादो मच्चुनो पदं।
-धम्मपद, 2/1 अप्रमाद अमरता का मार्ग है, प्रमाद मृत्यु का।
आचरण
न च खुदं समाचरे किञ्चि,