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________________ 430 / जैन नीतिशास्त्र : एक परिशीलन जे छे से विप्पमायं न कुज्जा । - सूत्रकृतांग, 1/14/1 है । जो प्रमाद (आलस्य) नहीं करता, वह वस्तुतः चतुर सिग्घं आरुह कज्जं पारद्धं मा कहं वि सिढिलेसु । पारद्ध सिढिलियाई कज्जाइ पुणो न सिज्झति । । है । कार्य का प्रारंभ शीघ्र करो, प्रारंभ किये हुए कार्य में किसी भी प्रकार की शिथिलता मत करो। प्रारंभ किये हुए कार्यों में एक बार शिथिलता आ जाने पर वे पुनः पूर्ण नहीं हो पाते हैं। इमं च मे अत्थि इमं च नत्थि, इमं च मे किच्चं इमं अकिच्चं । तं एवमेव लालप्पमाणं, हरा हरंति त्ति कहं पमाए । । - वज्जालग्ग, 9/2 - उत्तराध्ययन, 14/15 यह मेरे पास है और यह भी नहीं है, यह मुझे करना है और यह नहीं करना है इस प्रकार व्यर्थ बकवास करते हुए पुरुष को उठाने वाला (काल) उठाकर ले जाता है। इस स्थिति में प्रमाद कैसे किया जाय ? सीतंति सुवंताणं अत्था पुरिसाण लोगसारत्था । तम्हा जागरमाणा, विधुणध पोराणयं कम्मं । । - बृहत्कल्पभाष्य, 3383 जो पुरुष सोते हैं (आलसी हैं) उनके जगत् में सारभूत अर्थ (लक्ष्य) नष्ट हो जाते हैं। इसलिए सतत जागते रहकर पूर्वार्जित कर्मों को नष्ट करो । जागरिया धम्मीणं, अहम्मीणं च सुत्तया सेया । - बृहत्कल्पभाष्य, 3386 धार्मिक जनों का जागना श्रेयस्कर है और अधार्मिकों का सोना श्रेयस्कर जागरह नरा ! णिच्चं, जागरमाणस्स वड्ढते बुद्धी । सो सुवति ण सो धन्नो, जो जग्गति सो सया धन्नो ।। - बृहत्कल्पभाष्य, 3283 मानवो ! सदा जाग्रत (सावधान) रहो । जागृत व्यक्ति की बुद्धि बढ़ती है । जो सोता है वह धन्य नहीं है । सदैव जागने वाला ही धन्य है ।
SR No.002333
Book TitleNitishastra Jain Dharm ke Sandharbh me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherUniversity Publication Delhi
Publication Year2000
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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