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समस्याओं के समाधान में जैन नीति का योगदान / 415 कष्ट का अनुभव नहीं हो सकता, उसके जीवन में सुख-शांति की सरिता बहती रहेगी, उमंगों के सुमन खिलते रहेंगे, आनन्द की बहारों में वह झूमता रहेगा। जैन-नीति की विश्व को अनुपम देन (Unique Legacy of Jain Ethics to World)
जैन-नीति ने कुछ ऐसे नैतिक प्रत्यय विश्व-मानव को दिये हैं, जो इसके अपने विशिष्ट तो हैं ही, साथ ही मानवता की उन्नति, प्रगति और सुख-शांति के लिए अनिवार्य हैं। नैतिक निर्णय के आधार ___ नैतिक निर्णय व्यक्ति के लिए सर्वाधिक महत्वपूर्ण समस्या रही है। उसका अमुक कार्य नैतिक है अथवा अनैतिक या नीतिविरोधी-इसका निर्णय करना सबके लिए कठिन रहा है। यह समस्या प्राचीन काल में भी थी, आज भी है और संभवतः आगे भी रहेगी। ___ इस समस्या के लिए व्यावहारिक समाधान के लिए जैन नीतिकारों ने पाँच प्रकार के आधार बताए हैं। आगमों में इन पाँच आधारों को आचार-व्यवहार कहा है। वे हैं
(1) आगम व्यवहार-धर्मशास्त्रों की दृष्टि से केवलज्ञानियों, मनः पर्यवज्ञानियों, अवधिज्ञानियों और नौ-दस-चौदह पूर्वधारियों का आचार, इनके द्वारा किया हुआ आचरण आगम व्यवहार कहलाता है।
जैन नीति की दृष्टि भी लगभग यही है। इसका कारण यह है कि उपरोक्त विशिष्ट व्यक्तियों का आचरण नीतिसम्मत ही होता है, क्योंकि विशिष्ट ज्ञान होने के कारण ये भूत, भविष्य और वर्तमान काल के ज्ञाता होते हैं, नैतिक आचरण उनकी सहज वृत्ति बन जाता है।
(2) श्रुत व्यवहार-धर्मशास्त्रों के दृष्टिकोण से आठ और नौवें (अपूर्ण) पूर्व के ज्ञाता साधकों द्वारा आचरित या प्रतिपादित मर्यादाएँ, व्यवहार श्रुतव्यवहार कहलाता है। इनका संकलन आयार दशा, बृहत्कल्प, व्यवहारसूत्र में भी हुआ है, अतः इन ग्रन्थों में उल्लिखित व्यवहार भी श्रुतव्यवहार ही है। 1. तुलना करिएमहाजनाः येन गताः स पंथाः।
-महाभारत