________________
समस्याओं के समाधान में जैन नीति का योगदान / 413
माता-पिता की सेवा करना, जिनके पालन-पोषण का दायित्व अपने ऊपर हो, उनका पालन पोषण करे। किसी की आजीविका बन्द न करे।'
इन गुणों में तो अतिथि, दीन असहाय जनों और साधुओं की सेवा करने की प्रेरणा भी दी गई है। दान, सेवा और सहायता जैन श्रावक के प्रमुख कर्तव्य
है।
इस प्रकार स्पष्ट है कि व्यक्तिगत, पारिवारिक और सामाजिक समस्याओं के समुचित समाधान जैन-नीति में दिये गये हैं।
(2) राजनीतिक समस्याओं का समाधान-मध्ययुग तक सामान्य जनता की कोई विशेष राजनीतिक समस्या नहीं थी। उस समय तक सामान्य जनता की यही अवधारणा थी
कोउ नृप होय हमहिं का हानी?
किन्तु प्रजातंत्र के प्रचार और राष्ट्रीय आन्दोलन के फलस्वरूप हुई जन-जागृति के कारण राजनीति ने अपना प्रसार जन साधारण तक विस्तृत कर दिया। गांधीजी के शब्दों में राजनीति ने जनता को नागपाश के समान जकड़ लिया है। और इसका परिणाम यह हुआ कि राजनीतिक समस्याएँ जनता के समक्ष खड़ी हो गईं।
जैन नीतिकारों ने संभवतः इन सब राजनीतिक परिवर्तनों का पूर्वानुमान लगा लिया था, इसीलिए आचार्य हेमचन्द्र और हरिभद्र ने सामान्य जनता को नीति दी-कभी राजा की निन्दा न करे।
जहाँ तक राज्य संचालन सम्बन्धी नीति का प्रश्न है तो जैन नीतिकार सोमदेव सूरि और आचार्य हेमचन्द्र ने अपनी पुस्तक अर्हन् नीति में राजा के कर्तव्य और उत्तरदायित्व की विस्तृत विवेचना की है तथा सुराज्य सम्बन्धी नीति-सिद्धान्त निर्धारित किये हैं।
1. विस्तार के लिए देखिए-इसी पुस्तक का 'जैन नीति के व्यावहारिक सोपान' नामक
अध्याय। 2- Politics has become the snake girdle of people. -Gandhi 3. आचार्य हेमचन्द्र : योगशास्त्र, प्रथम प्रकाश, श्लोक 48
अवर्णवादी न क्वापि, राजदिषु विशेषतः। 4. सोमदेव सूरि : नीतिवाक्यामृत में राजनीति, संपादक एम. एल. शर्मा 5. आचार्य हेमचन्द्र : अर्हन् नीति