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400 / जैन नीतिशास्त्र : एक परिशीलन
वैदिक दर्शन में इसे अविद्या कहा गया है। और सम्पूर्ण भारतीय संस्कृति में मिथ्यात्व अथवा अविद्या को अनैतिक माना गया है। यहाँ तक कि भ्रान्तचित्त व्यक्ति को तो नैतिकता का स्पर्श भी स्वीकार नहीं किया है, उसे घोर अनैतिक माना गया है।
जैन नीति के अनुसार सभी प्रकार के अपराध, कर्तव्यों का उल्लंघन अथवा दुरुपयोग तथा अधिकारों का अनुचित प्रयोग, पर-पीड़न आदि अनैतिकता है और कर्तव्यों तथा अधिकारों का सदुपयोग, सेवा, सहयोग आदि नैतिकता है।