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382 / जैन नीतिशास्त्र : एक परिशीलन
यह अधिकार भी सार्वभौम है। इसकी इतनी मान्यता है कि घनघोर युद्ध में भी चिकित्सालयों पर आक्रमण नहीं किया जाता। यदि निशाना चूकने से काई बम अस्पताल पर पड़ भी जाये तो सारा संसार उसकी भर्त्सना करता है।
जैन दृष्टि से भी नीरोगता को प्रमुख माना गया है। वहाँ भक्त प्रभु की प्रार्थना करता हुआ आरोग्य-लाभ प्रदान की इच्छा करता है। (4) शिक्षा का अधिकार (Right of Education)
शिक्षा का अधिकार नैतिकता से सीधा संबंधित है। शिक्षा प्राप्त व्यक्ति श्रेय-अश्रेय, शभ-अशभ और अपने हिताहित को जान सकता है। आज्ञानी अथवा अशिक्षित व्यक्ति इनमें विवेक नहीं कर सकता। शिक्षा ही मानव के सर्वागीण विकास का एकमात्र साधन है। शिक्षा ही मानव को पशत्व से ऊपर उठने में प्रथम और प्रमुख सहायक बनती है, और सामान्य मानव को नैतिक बनाने में सक्षम होती है। नैतिक धारणाओं को सर्वव्यापी बनाने के लिए शिक्षा एवं सशिक्षा की महती आवश्यकता है।
इसीलिए मनीषियों ने शिक्षा-प्राप्ति के अधिकार को व्यक्ति के नैतिक अधिकारों में स्थान दिया है। शिक्षा (ज्ञान) प्राप्त करना प्रत्येक मनुष्य का अधिकार है।
(5) सम्पत्ति का अधिकार (Right of Property)
जीवन और जीविका उपार्जन के अधिकार के साथ सम्पत्ति रक्षण का अधिकार भी संलग्न है। ___मानव दूरदर्शी प्राणी है, वह भविष्य के बारे में भी सोचता है। वह जानता है कि मानव-जीवन में दुःख, कष्ट, आपत्ति, विपत्ति आते ही रहते हैं। कभी बेरोजगारी तो कभी रोजगार में कमी, कभी बीमारी का आक्रमण भी हो जाता है और आज के युग में एक्सीडेंट की सम्भावना तो पग-पग पर बनी रहती है।
इन सब आकस्मिक घटनाओं से पार पाने के लिए धन अति आवश्यक है। धन के संबल से इन आपदाओं को सरलता से पार किया जा सकता है। इसीलिए वह अपने उपार्जन में से कुछ धन का संचय करता रहता है और यह संचित द्रव्य ही उसकी और उसके परिवार की सम्पत्ति बन जाता है। इसके रक्षण का अधिकार समाज उसे देता है। 1. आरोग्यगोहि लाभं"।
-लोगस्स, आवश्यक सूत्र।