SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 41
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नीतिशास्त्र की पृष्ठभूमि / 13 (2) No-policy (अनीति)-इसमें व्यक्ति अपना स्वार्थ ही सिद्ध करने की चेष्टा करता है। उसकी कोई निश्चित नीति नहीं होती। जैसा अवसर देखा, वैसा बदल गया। (3) Crooked or bad policy—यह कुनीति अथवा दुर्नीति के समकक्ष है। व्यक्ति इसमें अपना अपयश और अन्य लोगों की हानि करता है। इसमें संवेग प्रमुख कार्य करते हैं। संवेगों के प्रवाह में व्यक्ति बह जाता है। विवेक से उसका दूर का भी वास्ता नहीं होता। वास्तव में वही दुर्नीति है, जिसमें अपनी तथा दूसरे की भी हानि होती है और परिणाम दुःखद होता है। निर्णयक्षमता के विकास हेतु नीतिशास्त्र का ज्ञान आवश्यक नीति, अनीति और दुर्नीति के भेद से यह स्पष्ट है कि व्यक्ति को किसी कार्य को प्रारम्भ करने का निर्णय भली-भाँति सोच-विचार कर लेना चाहिए। किन्तु सही स्थिति यह है कि शुभ निर्णय लेने की क्षमता प्रत्येक व्यक्ति में समान नहीं होती। कुछ ही व्यक्ति ऐसे होते हैं जो समयानुकूल उचित और नीतिसम्मत निर्णय ले पाते हैं। ऐसे लोग अन्तःप्रज्ञा के धनी होते हैं। लेकिन सभी की अन्तःप्रज्ञा इतनी विकसित नहीं होती कि वे परिस्थितियों का सही विश्लेषण करके सही निर्णय ले सकें। समाज में ऐसे सामान्य व्यक्तियों की संख्या ही अधिक है। ये सामान्य व्यक्ति कुछ अन्तःप्रज्ञा से, कुछ अपने अनुभव से, कुछ शास्त्र के ज्ञान से और कुछ गुरु के निर्देशन से निर्णय लेने में सक्षम हो पाते हैं। इसलिए निर्णय के आधारभूत तत्त्वों और मानदण्डों का ज्ञान प्रत्येक व्यक्ति के लिए आवश्यक है। इस ज्ञान से उसकी निर्णय क्षमता जाग्रत होती है और बढ़ती है। इस प्रक्रिया में नीतिशास्त्र का अध्ययन बहत ही लाभप्रद और उपयोगी है। यह मनुष्य को सही समय पर सही निर्णय लेने में सक्षम बनाता है। जीवन में सफलता के लिए नीतिशास्त्र का ज्ञान आवश्यक जो मनुष्य सही समय पर सही निर्णय लेकर और उसे सही ढंग से अमल में ले आते हैं (Right decision at right time and right execution) वे जीवन यात्रा में सफल होते हैं, उनका जीवन यशस्वी होता है। 1. सह सम्मुइयाए, पर वागरणेण -आचारांग 1,1
SR No.002333
Book TitleNitishastra Jain Dharm ke Sandharbh me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherUniversity Publication Delhi
Publication Year2000
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy