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354 / जैन नीतिशास्त्र : एक परिशीलन
जब इसमें धार्मिकता का, आत्म-कल्याण का, यथार्थ बोध और दृष्टिकोण का पुट मिल जाता है तो नैतिकता धार्मिकता से संयुक्त होकर आत्मोत्थान का हेतु भी बन जाती है। ऐसी नैतिकता से मानसिक वृत्तियों का शोधन भी होता है। सदिच्छा (Good will) जो नीति का एक प्रमुख प्रत्यय है, वह शाब्दिक और व्यावहारिक तथा उपचार मात्र न रहकर यथार्थ वास्तविकता बन जाता है।
सदिच्छा से प्रेरित मानवीय समस्त व्यवहार स्वात्म और परात्मकल्याणकारी के रूप में एक विशिष्टता उत्पन्न करता है। इसी विशिष्टता की अपेक्षा जैन-दर्शन ने नैतिकता का प्रारम्भ अवितरतसम्यग्दृष्टि गुणस्थान से माना है क्योंकि यहीं से नीति अथवा नैतिकता आत्म-सुख अथवा चरम शुभ (Ultimate good) लक्ष्यी बनती है और यह संपूर्ण नीति का चरम लक्ष्य अथवा ध्येय है।