________________
7
आत्म - विकास की मनोवैज्ञानिक नीति
(PSYCHO-MORALITY OF SPIRITUAL
DEVELOPMENT)
गुणस्थान
(Stage of Spiritual Development)
पूर्णता की अवधारणा मानव मस्तिष्क का अपरिहार्य बिन्दु है । प्रत्येक मानव पूर्ण - परिपूर्ण होना चाहता है, उन्नति के सर्वोच्च शिखर पर आसीन होना चाहता है ।
विद्यार्थी कॉलेज शिक्षा के अन्तिम बिन्दु तक पहुंचना चाहता है, डाक्टर एम. बी. बी. एस. की डिग्री से सन्तुष्ट नहीं होता, वह और भी ऊँची से ऊँची डिग्रियाँ प्राप्त करता है और किसी विषय का सुपर स्पेशलिस्ट बनना चाहता है । यही मनोदशा व्यापारी वर्ग की है तथा अधिकारी और राजनेता की भी यही है । लखपति हो गया तो करोड़पति बनने की महत्वाकांक्षा सताने लगती है । साधक की भी यही मनःस्थिति है । वह नैतिक चरम की स्थिति पर पहुंचकर ही सन्तुष्ट नहीं हो जाता अपितु और आगे विकास करके आध्यात्मिक पूर्णता - परिपूर्णता, सर्वोच्चता की स्थिति पर पहुंचने के लिए प्रयास करता है ।
1
आध्यात्मिक क्षेत्र में सर्वोच्चता को कैवल्य - प्राप्ति कहा गया है। कैवल्य 'का अभिप्राय है- अज्ञान एवं मोह का समूल उच्छेदकर अनन्त ज्ञान-दर्शन- सुख और वीर्य की समुपलब्धि ।
नीति में सर्वोच्चता अथवा परिपूर्णता की स्थिति को स्वीकार किया गया है। यहां भी परिपूर्णता से अभिप्राय कामना - वासना आदि संवेग उत्पन्न करने