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नैतिक चरम / 327
वास्तव में समिति-गुप्ति और विशेष रूप से समिति-यतना अथवा सावधानी और सतत जागरूकता है। श्रमण अपनी समस्त क्रियाएँ और प्रवृत्तियां सावधानीपूर्वक करता है।
समिति और गुप्ति में अन्तर प्रवृत्ति और निवृत्ति का है। विवेक दोनों में ही आवश्यक है। विवेकपूर्ण प्रवृत्ति करना समिति है और अपने ज्ञान-दर्शनचारित्र तथा आत्म-तत्व की रक्षा हेतु अशुभ योगों को रोकना गुप्ति है। समिति ___ समिति 5 हैं-(1) ईर्या समिति (2) भाषा समिति (3) एषणा समिति (4) आदान भण्डमात्र निक्षेपण समिति (5) उच्चार-प्रस्रवण-श्लेष्म-सिंघाणजल्ल परिष्ठापनिका समिति।
(1) ईर्या समिति-ईर्या का अर्थ गमन है, अतः गमन विषयक सद्प्रवृत्ति को ईर्या समिति कहा गया है। इसका अभिप्राय है-चलते समय इधर-उधर दृष्टि न रखकर मार्ग पर ही रखनी चाहिए और हाथ चार आगे देखकर चलना चाहिए, जिससे किसी क्षुद्र जन्तु की प्राण-हानि न हो जाय।
नीतिशास्त्रीय दृष्टिकोण ईर्यासमिति को और भी विशद रूप से स्वीकार करता है जीव-रक्षा की भावना तो है ही, स्वयं अपनी भी रक्षा होती है-पैर में चोट नहीं लगती, पांव गन्दगी से नहीं भरता, कांटा कंकर नहीं लगता। सामान्य नागरिक आचार के दृष्टिकोण से भी इसका बहुत महत्व है। आज के युग में लोग चलने में बहुत लापरवाह हो गये हैं, तभी तो इतने एक्सीडेंट हो रहे हैं।
अतः ईर्यासमिति अथवा गमनागमन की सावधानी प्रत्येक दृष्टिकोण से उपयोगी है, लाभप्रद है और सभी के लिए पालनीय है। यातायात के नियम Traffic Rules स्वयं इसमें सध जाते हैं।
(2) भाषा समिति-भाषा अथवा वाणी का बहुत महत्व है। क्रोध, मान, कपट, लोभ, हास्य, भय, मुखरता आदि दोषों से रहित, अवसर के अनुकूल और परिमित भाषा बोलना भाषा समिति है। दूसरे शब्दों में कटु भाषा, व्यंगोक्ति आदि मर्मकारी तथा दूसरे को पीड़ित करने वाली भाषा नहीं बोलनी चाहिए। भाषा विवेक ही भाषा समिति है। 1. ई-भाषैषणादाननिक्षेपोत्सर्गाः समितयः।
-तत्वार्थ सूत्र, 9,5 2. (क) उत्तराध्ययन सूत्र, 24, 4 (ख) ज्ञानार्णव, 18/5-7 (ग) मूलाराधना, 6/1191 3. (क) उत्तराध्ययन सूत्र, 24/9-10 (ख) योगशास्त्र, 1/37