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________________ 4 / जैन नीतिशास्त्र : एक परिशीलन "क्या करना चाहिए-किस प्रकार करना चाहिए"-इसका निर्णय किया जा सकता है। क्या (what) करना चाहिए? कब (when) करना चाहिए? किस प्रकार (how) करना चाहिए? कहाँ (where) करना चाहिए? क्यों (why) करना चाहिए? किसके साथ (to whom) करना चाहिए? इन सभी चाहिए (ought) का उत्तर देने वाला और शुभ (good) के सन्दर्भ में विचार करने वाला तथा आदर्श को लक्ष्यबिन्दु में बनाये रखने वाले शास्त्र का नाम नीतिशास्त्र (Ethics) है। जैन मनीषियों ने 'नीति' की परिभाषा की है-णीई धम्माणु जोयणी'-धर्म याने परम शुभ, सबका हित करने वाला-उसका अनुसरण या अनुसन्धान करने वाली पद्धति अथवा शैली नीति है। नीति के मानदण्ड की व्याख्या ही 'नीतिशास्त्र' है। श्री जेम्स सेथ का भी यही विचार है, वह लिखता है 'शुभ के विज्ञान के रूप में वह (नीतिशास्त्र) 'आदर्श' और 'चाहिए' का सर्वोत्कृष्ट विज्ञान है। वस्तुतः एक 'निश्चित शुभ आदर्श' और विभिन्न प्रकार के ‘चाहिए ही मानव की निर्णय क्षमता और कर्तव्य शक्ति तथा कार्य करने की दिशा का निर्देशन करते हैं, उसकी दिशा को निश्चित करते हैं। कार्य की साध्यता-असाध्यता किन्तु किसी कार्य को प्रारम्भ करने से पहले उसकी साध्यता (feasibility) और असाध्यता (non-feasibility) के बारे में भी जानना, समझना आवश्यक है। इस विषय में आचार्य जिनदास गणी के ये शब्द बहुत ही महत्वपूर्ण हैं 1. As the science of the good, it is the science par excellence of the 'ideal' and 'ought' -James Seth -उद्धृत, डा. वात्स्यायन : नीतिशास्त्र, पृ. 4
SR No.002333
Book TitleNitishastra Jain Dharm ke Sandharbh me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherUniversity Publication Delhi
Publication Year2000
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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