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नैतिक आरोहण का प्रथम चरण / 223
बड़ा पाप बताया है और कवि कालीदास ने इसे अनार्य व्यवहार कहा है तथा आचार्य मनु ने इस पुरुष के आयुष्य बल को क्षीण करने वाला कहा है। तथा अन्य मनीषियों ने भी निन्दा की है।
सामाजिक तथा नैतिक दृष्टि से परस्त्री-गमन घोर अनैतिकता तथा सामाजिक अपराध हैं। इससे परिवार टूट जाते हैं। पर-स्त्री सेवन के दोष और हानियां
सूत्रकृतांग सूत्र में बताया गया है कि पर-स्त्रीगामी के (समाज एवं राज द्वारा) हाथ-पैर काट दिये जाते हैं, उसकी चमड़ी उधेड़ दी जाती है, उसे जलाया जाता है और जले पर नमक छिड़का जाता है।
यद्यपि प्राचीन यग के समान इतना कठोर दण्ड आज नहीं दिया जाता तो भी स-परिश्रम कारावास की सजा तो दी ही जाती है।
यह तो राजकीय दण्ड है। इसके अतिरिक्त सामाजिक दृष्टि से भी पर-स्त्रीगामी को सर्वत्र प्रतारणा, धिक्कार ओर तिरस्कार ही प्राप्त होते हैं। अब भी पर-स्त्रीगामियों का काला मुंह करके सार्वजनिक रूप से अपमानित करने की घटनाएं समाचार-पत्रों में पढ़ने को मिल जाती हैं।
परस्त्रीसेवन के दोष से पुरुष अविश्वसनीय हो जाता है, कोई भी उस पर विश्वास नहीं करता, अपने घर में नहीं आने देता। यहां तक कि उस की स्वयं की स्त्री भी उस पर विश्वास नहीं करती। अपने ही बच्चों की दृष्टि में वह सन्दिग्ध हो जाता है और उनका भी चरित्र पतित हो जाता है। पूरे परिवार का ही सामाजिक तिरस्कार होता है।
धन और बल की हानि तो होती ही है, लेकिन सबसे बड़ी हानि स्वास्थ्य की होती है। अधिक और चाहे जिस स्त्री के साथ कामसेवन का परिणाम शरीर का सत्व निचुड़ जाने के रूप में सामने आता है, शरीर की रोग निरोधक क्षमता अल्प से अल्पतर होती हुई समाप्त हो जाती है। आज जो पश्चिमी देशों में ऐड्स (Accumulation of Immunity Deficiency) नाम का रोग फैला
-वाल्मीकि रामायण, 338/30
-अभिज्ञान शाकुन्तलम्
1. (क) परदाराभिशात्त नान्यत् पापतरं महत्। (ख) अनार्यः परदार व्यवहारः। (ग) नहीदृशमनायुष्यं लोके किंचित् दृश्यते।
यादृशं पुरुषस्येह परदारोपसेवनम्।।
-मनुस्मृति, 4/134