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सम्यग्दर्शन का स्वरूप और नैतिक जीवन पर उसका प्रभाव / 209
वस्तुतः सम्यक्त्व प्रदत्त विवेकदृष्टि सुमन की महक के समान होती है। जैसे सुमन स्वयं अपनी सुगन्धि से तो सुरभित रहता ही है, अन्यों के जीवन को, वातावरण को भी सुवासित कर देता है। इसी प्रकार सम्यक्त्व भी सम्यक्त्वी के जीवन को आध्यात्मिक तथा नैतिक दृष्टि से उन्नत बनाता है तथा अन्य संपर्क में आने वाले व्यक्तियों को भी उन्नत जीवन की प्रेरणा देता है।
यही सम्यक्त्व का नीतिशास्त्रीय महत्व है कि यह निश्चिन्त, तनाव रहित, शान्त और समत्व पूर्ण जीवन जीने की सही दिशा निर्धारित कर देता है।
सम्यग्दर्शन का सबसे बड़ा कार्य है-ज्ञान में यथार्थता का समावेश करके उसे सम्यग्ज्ञान बना देना। ___ बहुत से पढ़े लिखे मानव भी यथार्थ दृष्टिकोण वाले नहीं होते, नैतिकता, अनैतिकता का विभेद करने में सक्षम नहीं हो पाते।
सम्यक्त्व यथार्थश्रद्धा द्वारा सत्य दृष्टिकोण प्रदान करता है, जिससे ज्ञान भी यथार्थग्राही बन जाता है।
इसका परिणाम यह होता है कि ज्ञान पर पड़ा अयथार्थता का आवरण हट जाने से वह अपने विचारों तथा आचरण के दोषों को समझने, उन का यथार्थ विवेचन विश्लेषण करने में सक्षम हो जाता है। स्वयं के सुधार की इच्छा जागृत होने लगती है। ___ इस सुधार-इच्छा का फल आध्यात्मिक तथा नैतिक प्रगति के रूप में सामने आता है। व्यक्ति अधिक से अधिक नैतिकता की ओर झुकता जाता है
और अपने आचरण में अपेक्षित सुधार लाकर नैतिक जीवन जीने के लिए प्रयत्नशील होता है।