________________
172 / जैन नीतिशास्त्र : एक परिशीलन
आगे उन्होंने कहा कि उस स्त्री के पुत्र हो अथवा न हो, इसका उस के संपत्ति के स्वामित्व पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता।
इस व्यवस्था के मूल में घटना इस प्रकार थी
एक बार पाटणनरेश कुमारपाल ने रात्रि के समय किसी स्त्री का रुदन स्वर सुना। वे उसके पास पहुंचे। उस समय वह आत्महत्या करने को तैयार हो रही थी। कुमारपाल ने रुदन और आत्महत्या का कारण पूछा तो उस स्त्री ने बताया-मेरे पति मुझे निपुत्री ही छोड़कर स्वर्ग पधार गये हैं। देश की परम्परा के अनुसार प्रातःकाल ही मेरा सारा धन राजकोष में जमा कर दिया जायेगा और मैं दाने-दाने को मोहताज होकर दर-दर भटकती फिरूँगी। __इस बात को सुनकर कुमारपाल का हृदय द्रवित हो गया। उन्हें इस बीभत्स प्रथा से घृणा हो गई जो एक कुलीन स्त्री को इतना पतित व विवश कर दे।
कुमारपाल ने आचार्य हेमचन्द्र के समक्ष अपने मन की उलझन रखी और इसका उचित समाधान चाहा। आचार्यश्री के परामर्श पर राजा ने सभासदों, मंत्रियों, कोषाध्यक्ष के प्रबल विरोध के बावजूद भी इस प्रथा को बन्द कर दिया, और दृढ़ स्वर में कह दिया-स्त्रियों को आत्महत्या पर विवश कर देने वाली इस कुत्सित प्रथा से प्राप्त धन मुझे किसी कीमत पर नहीं चाहिए।
इस व्यवस्था के बाद भी इस कुत्सित प्रथा का अस्तित्व बना रहा जो लार्ड डलहौजी की हड़प नीति के रूप में सामने आया। उसने भी, जो राजा निःपुत्री मर गये उनके राज्य को कम्पनी शासन के अन्तर्गत लेने का कुचक्र चलाया, यहां तक कि हजारों वर्षों से प्रचलित और मान्यता प्राप्त दत्तक पुत्रों को भी उत्तराधिकारी स्वीकार करने से इनकार कर दिया।
अपनी इस हड़प नीति के अनुसार कम्पनी सरकार ने झांसी आदि अनेक राज्यों को हड़प लिया। यह प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम का एक प्रमुख कारण सिद्ध हुआ।
इस प्रकार यह प्रथा एक भयंकर दुर्नीति के रूप में समाज और राज्य तथा व्यक्तिगत एवं पारिवारिक जीवन के लिए व्यभिचार, क्लेश, कलह, संघर्ष का कारण बनी।
विवेक के आधार पर निर्णय लेने वाले नैतिक व्यक्ति को ऐसी हानिकारक रूढ़ियों को तोड़ने का निश्चय करना पड़ता है और उसका यह निश्चय पूर्ण रूप से नैतिक होता है। 1. युवाचार्य श्री मधुकर मुनि : जैन कथामाला, भाग 17, पृ. 43 का सार-संक्षेप 2. देखिए, आधुनिक भारत-लार्ड डलहौजी की हड़प नीति।