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नैतिक निर्णय / 157
(2) घृणा
व्यवहार के मनोवैज्ञानिक प्रेरणा तत्व
जैसा कि ऊपर बताया जा चुका है, मन ही समस्त इच्छाओं, कामनाओं, वासनाओं आदि का केन्द्र है। इसलिए मन ही मानव के समस्त व्यवहारों का मूल केन्द्र है और उसकी मूलप्रवृत्तियाँ आदि को व्यवहारों का प्रेरक तत्व स्वीकार किया जाता है।
इस विषय पर सभी पौर्वात्य और पाश्चात्य मनीषी एकमत है। इनमें अन्तर है तो मूलप्रवृत्तियों की संख्या और वर्गीकरण के सम्बन्ध में ही है।
फ्रायड काम को ही मूल प्रेरक तत्व मानते हैं, किन्तु अन्य पाश्चात्य मनोवैज्ञानिक चिन्तकों ने 100 तक मूलप्रवृत्तियाँ स्वीकार की हैं। मैक्डूगल ने इन मूल प्रवृत्तियों का वर्गीकरण 14 भेदों में किया है
(1) पलायन वृत्ति (भय (3) जिज्ञासा
(4) आक्रामकता (क्रोध) (5) आत्म गौरव की भावना (6) आत्महीनता की भावना(मान) (7) वात्सल्य भावना (8) सामूहिकता की भावना (सन्तानोत्पति)
(समूह प्रवृत्ति) (9) संग्रहवृत्ति (लोभ) (10) रचनात्मकता (11) भूख (भोजन की गवेषणा) (12) कामतुष्टि की भावना (13) शरणागति
(14) हास्य (मनोरंजन) की भावना।' __ मैक्डूगल ने इन्हें मूलप्रवृत्ति कहा है और बताया है कि मानवीय व्यवहार के ये प्रेरक तत्व हैं। जैन दर्शन का वर्गीकरण
जैन दर्शन में मूल प्रवृत्तियों के समकक्ष 'संज्ञा' शब्द को माना जा सकता है। वहाँ इसका (संज्ञाओं का) वर्गीकरण तीन रूप में मिलता है।
(1) प्रथम वर्गीकरण-(1) आहार संज्ञा (2) भय संज्ञा (3) मैथुन संज्ञा और (4) परिग्रह संज्ञा
(2) द्वितीय वर्गीकरण-(1) आहार, (2) भय, (3) मैथुन, (4) परिग्रह, (5) क्रोध, (6) मान, (7) माया, (8) लोभ, (9) लोक और (10) ओघ (सामान्य)। 1. McDougall: Psychology 2. समवायांग, 4/4
3. प्रज्ञापना, पद