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________________ नैतिक निर्णय / 155 नैतिक निर्णय पर मनोवैज्ञानिक प्रभाव नीतिशास्त्र वस्तुतः शुभ का शास्त्र है। वह हमारे समक्ष आदर्श रखता है और उस आदर्श को प्राप्त करने की प्रेरणा भी देता है, लेकिन उन आदर्शों को प्राप्त करने के उपाय स्पष्ट रूप से नहीं बता पाता। इनके लिए मनोविज्ञान की-मानव की प्रवृत्तियों की जानकारी की आवश्यकता है और इसके लिए मनोविज्ञान का अध्ययन आवश्यक है। नैतिक शुभ के प्रश्न को लेकर नीतिशास्त्र में दो प्रकार की प्रमुख विचारधाराएँ हैं-(1) सुखवादी और (2) बुद्धिवादी। सुखवादियों के अनुसार मानव अनुभूतिप्रधान प्राणी है और बुद्धिवादी काण्ट मानव को विशुद्ध बौद्धिक प्राणी मानता है। वह मानव के नैतिक जीवन में अनुभूतियों तथा संवेगों को कोई स्थान ही नहीं देना चाहता; जबकि सुखवादी ह्यूम बुद्धि को वासनाओं (संवेगों) की दासी मानता है। सुखवाद और बुद्धिवाद के इस विवाद का समाधान मनोविज्ञान ही कर सकता है। इसलिए नीतिशास्त्र के लिए मनोविज्ञान का अध्ययन अत्यन्त आवश्यक तो है ही, अनिवार्य भी है। इसका कारण यह है कि मनुष्य वासनामय भी है, संवेगमय भी है और बौद्धिक भी है। उसमें ज्ञान, अनुभव, प्रेरणाएँ, संकल्प, अनुभूतियाँ, आवेग आदि सभी मूल प्रवृत्तियाँ हैं। ____ अतः नैतिक निर्णय की प्रक्रिया को सही ढंग से समझने के लिए सम्पूर्ण मानव का अध्ययन आवश्यक है; और 'इस अध्ययन में मनोविज्ञान अपेक्षित सहायता करता है। मनोविज्ञान, चूंकि मन का, मन की प्रवृत्तियों, विकृतियों, आवेगों-संवेगों का विज्ञान है, अतः पहले मन के बारे में समझ लें। मानव मन बौद्ध दर्शन मन को चेतन तत्व स्वीकार करता है और गीता' इसे त्रिगुणात्मक प्रकृति से उत्पन्न बताती है। जैन दर्शन मन को जड़ और चेतन दोनों ही रूप में स्वीकार करता है तथा पौद्गलिक मन को द्रव्यमन तथा चेतनमन को भाव-मन कहता है। 1. Reason is an ought to be the slave of passions. --Hume 2. गीता, 7 1 4, 1315 3. अभिधान राजेन्द्र कोष, खण्ड 6, पृ. 74
SR No.002333
Book TitleNitishastra Jain Dharm ke Sandharbh me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherUniversity Publication Delhi
Publication Year2000
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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