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90 / जैन नीतिशास्त्र : एक परिशीलन
ये सभी और इन जैसे ही अन्य अनेक प्रश्न बुद्धिशील मानव के मस्तिष्क में सहज ही उठते हैं। इनका समाधान नीतिशास्त्र देता है। दूसरे शब्दों में यह भी नीतिशास्त्र के विवेच्य विषय हैं।
न्याय का विवेचन
न्याय, मानव के सामाजिक जीवन की उन्नति का एक सुदृढ़ आधार है। यह सामाजिक व्यवस्थाओं और उनके सुचारु संचालन की नींव भी है। जिस समाज में व्यक्ति को उचित न्याय नहीं मिल पाता, वह समाज विशंखलित होकर नष्ट-भ्रष्ट हो जाता है। मानव का भी नैतिक पतन हो जाता है।
अतः नीतिशास्त्र में न्याय का विशेष महत्व है। न्याय क्या है, उसका सामाजिक जीवन में क्या महत्व है, व्यक्ति किन साधनों से न्याय प्राप्त कर सकता है, सामाजिक एवं वैयक्तिक न्याय में परस्पर क्या संबंध है? आदि सभी बातों का विवेचन नीतिशास्त्र का प्रमुख प्रतिपाद्य विषय है।
प्लेटो ने तो अपनी पुस्तक 'रिपब्लिक' (Republic) में न्याय को ही प्रमुख विषय बनाया है और उपरोक्त सभी बातों का विवेचन किया है।
तथ्य यह है कि यदि राज्य अथवा समाज की व्यवस्था समुचित और सर्वजनसुलभ न्याय पर आधारित नहीं होती तो वहाँ मत्स्य न्याय' अथवा जंगल-कानून (wild law) की प्रवृत्ति पनपेगी, जिसमें शक्तिशाली निर्धनों का शोषण करेंगे, उन्हें अनुचित तरीकों से दबायेंगे, उनके उचित अधिकारों का हनन करेंगे, ऐसी स्थिति में समाज में अव्यवस्था फैल जायेगी, व्यक्ति का जीवन भी सुरक्षित नहीं रह सकेगा।
- इसीलिए नीतिशास्त्र न्याय का विवेचन करता है, न्याय पाने के सुगम तरीके बताता है तथा उन विधियों को भी सुझाता है, जिनसे न्याय सर्वसाधारण को सरलता से सुलभ हो सके।
यही कारण है कि न्याय, नीतिशास्त्र का प्रमुख विवेच्य है।
1. In the Republic justice is called the health of the soul and ethics
are described as the inquiry into justice.
-Erdmann: A History of Philosophy (Eng. Translation) Vol. I, p. 121 2. परस्परामर्षितया जगतो भिन्न वर्त्मनः।।
दण्डाभावे परिध्वंसी मात्स्योन्यायः प्रवर्तते ।।-कामन्दकीय नीतिसार, 2/40