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श्री वटपद्र तीर्थ
तीर्थाधिराज * श्री पौरूषादानीय पार्श्वनाथ भगवान, श्वेत वर्ण, पद्मासनस्थ (श्वे. मन्दिर) ।
तीर्थ स्थल बड़ोदा गाँव के मध्य ।
प्राचीनता ® इसके प्राचीन नाम मेघपुरपाटण, वटपद्रनगर आदि रहने का शास्त्रों में उल्लेख है । इस मन्दिर का निर्माण वि. सं. 1036 में हुआ माना जाता है । धुलेवा में विराजित श्री केशरियानाथ भगवान की प्रतिमा वि. सं. 909 में यहीं प्रकट हुई थी, ऐसी मान्यता है । कोई जमाने में यह एक विराट नगरी थी। गाँव के चारों तरफ बिखरे हुए ध्वंसावशेष यहाँ की प्राचीनता की याद दिलाते नजर आते हैं ।
विशिष्टता यह राजस्थान-मेवाड़ के डुंगरपुर जिले का प्राचीनतम तीर्थ रहने के कारण यहाँ की विशिष्ट महानता है ।
नगर धुलेवा में विराजित श्री केशरियानाथ भगवान की प्राचीन व चमत्कारिक प्रतिमा यहाँ से लगभग 4 फर्लाग दूर एक वट वृक्ष के नीचे भूगर्भ से प्रकट हुई थी, ऐसे मान्यता है । जहाँ प्रतिमा प्रकट हुई थी वहाँ
पर प्रभु की चरण पादुकाएँ प्रतिष्ठित हैं व हजारों जैन व जैनेतर दर्शनार्थ आते हैं । भक्तों के दुखहरनार श्री केशरिया बाबा का यह प्राचीन स्थान माना जाने के कारण भक्तगण विशेष श्रद्धा से यहां आकर अपनी-अपनी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं । __ अन्य मन्दिर वर्तमान में इसके अतिरिक्त यहाँ से लगभग 4 फल्ग दूर एक पीपल के पेड़ के नीचे देरी में श्री आदीश्वर भगवान की चरण पादुकाएँ हैं । जहाँ से श्री केशरिया नाथ भगवान की प्रतिमा प्रकट हुई थी, ऐसा माना जाता है । कुछ वर्षों पूर्व ही यहाँ पुनः जीर्णोद्धार हुआ है । आज भी यह पवित्र स्थल केशरियाजी का पुराना स्थान के नाम से प्रचलित हैं । ___ कला और सौन्दर्य यह प्राचीन तीर्थ क्षेत्र रहने के कारण गाँव के चारों तरफ अनेकों प्राचीन कलात्मक खण्डहर नजर आते हैं । इसी मन्दिर में एक प्राचीन प्रतिमाजी पर वि. सं. 1359 का लेख उत्कीर्ण हैं । कहा जाता है यह प्रतिमा भी यहाँ से लगभग 4 फर्लाग दूर एक पेड़ के नीचे से प्रकट हुई थी । प्राचीन बीशविहरमान पट्ट, चौबीस जिन कल्याणक पट्ट आदि दर्शनीय हैं । मार्ग दर्शन ® यहाँ से नजदीक का रेल्वे स्टेशन
श्री पौरुषदानीय पार्श्वप्रभु जिनालय-वटपद्र
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