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________________ मंगल करता हुआ यहाँ का शान्त व शुद्ध वातावरण लिए फोटोग्राफी हेतु पूरे भारत के तीर्थ स्थानों का आत्मा को परम शान्ति प्रदान करता है। यहाँ के भ्रमण करते हुए यहाँ आये । प्रतिनिधिगण प्रभु की अधिष्ठायक देव अत्यन्त चमत्कारिक व साक्षात हैं । पूजा-सेवा करके उल्लासपूर्वक आ रहे थे । तब प्रवेश तब ही तो अनेकों बार यह क्षेत्र आक्रमणकारियों द्वारा । द्वार में नागदेव के दर्शन हुए । अधिष्ठायक देव का विध्वंस होने पर भी इस मन्दिर को आँच नहीं आयी। स्वरूप समझकर फोटो लिये गये । इतने में नागदेव वहाँ पर स्थित एक पत्थर के नीचे चले गये, जहाँ पर कहा जाता है हाल ही में पाकिस्तान द्वारा हुए कोई छिद्र आदि नहीं था । जीर्णोद्धार का काम आक्रमण के समय यहाँ के अधिष्ठायक, नागदेव के करनेवाले उपस्थित शिलावटों आदि ने कहा कि यहाँ स्वरूप में कभी-कभी शिखर के ध्वजा दण्ड पर बैठे कोई छिद्र नहीं हैं । पत्थर हटाते ही नागदेव बाहर आ नजर आते थे । इस आक्रमण के समय भी इस स्थान जायेंगे, आप मन चाहे फोटो फिर ले सकेंगे । उनका को कोई आँच नहीं आयी । यहाँ से गुजरनेवाले यह भी कहना था कि जंगल में अनेकों सर्प घूमते भारतीय सेना के अफसर आदि भी प्रभु के दर्शन कर नजर आते हैं । इनको यहाँ के अधिष्ठायक आगे बढ़ते थे । आक्रमण के समय सुविधा हेतु आखिर श्री धरणरेन्द्र देव उसी हालत में हम मान सकते हैं, मन्दिर तक डामर सड़क का निर्माण सरकार द्वारा हो अगर यहाँ से लगभग 10 मीटर दूर स्थित उनके ही चुका था । अभी वर्तमान में एक अभूतपूर्व चमत्कार स्थान पर प्रकट होकर दर्शन दें । संवाद चल ही रहा हुआ, जिसका संक्षेप में आँखों देखा वर्णन इस प्रकार था, कुछ सज्जन पुनः दर्शन की अति उत्सुकता के साथ पत्थर के निकट बैठे थे । परन्तु देव तो अदृश्य हो चुके दिनांक 1 अप्रैल, 1975 को श्री महावीर जैन थे । इतने में एक सज्जन ने पुकारा कि अधिष्ठायक कल्याण संघ, मद्रास के प्रतिनिधिगण इस ग्रन्थ के देव नागदेव के रूवरूप में अपने ही स्थान पर प्रकट डेलीगेसन के सदस्यों को अधिष्ठायक देव के अपूर्व दर्शन-लोद्रवपुर 294
SR No.002331
Book TitleTirth Darshan Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Jain Kalyan Sangh Chennai
PublisherMahavir Jain Kalyan Sangh Chennai
Publication Year2002
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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