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श्री जैसलमेर तीर्थ
इधर-उधर जाकर, बसी, जिससे लोद्रवा सूना-सा दिखने लगा । जैसलजी ने लोद्रवा से यहाँ आकर
अपनी नयी राजधानी बसायी । कहा जाता है, यहाँ के तीर्थाधिराज श्री चिन्तामणि पार्श्वनाथ भगवान, मूलनायक श्री चिन्तामणि पार्श्वनाथ भगवान की प्रतिमा श्वेत वर्ण, पद्मासनस्थ, लगभग 105 सें. मी. वही है, जो लोद्रवा मन्दिर में थी । इस पर सं. 2 (श्वे. मन्दिर) ।
का लेख उत्कीर्ण है । तीर्थ स्थल जैसलमेर गाँव के पास टेकरी पर लोद्रवा ध्वंस हुआ तब यह प्रतिमा यहाँ लायी गयी। किले में ।
वि. सं. 1263 फाल्गुन शुक्ला 2 को यह प्रतिमा प्राचीनता * रावल जैसलजी ने अपने नाम पर आचार्य श्री जिनपतिसूरीश्वरजी द्वारा विराजित करवाने जैसलमेर बसाकर किले का निर्माण कार्य वि. सं. का उल्लेख है । इसका उत्सव श्रेष्ठी श्री जगधर ने बड़े 1212 आषाढ़ शुक्ला प्रतिपदा रविवार के दिन प्रारम्भ ही धूमधाम के साथ किया था । यह भी कहा किया । इनके भतीजे भोजदेव रावल की राजधानी जाता है कि इस प्रतिमा की प्रतिष्ठा आचार्य लोद्रवा थी । काका-भतीजे में कुछ अनबन के कारण। श्री जिनकुशलसूरीश्वरजी के हाथों हुई थी । वि सं. जैसलजी ने मोहम्मद गोरी से सैनिक संधि करके 1459 में आचार्य श्री जिनराजसूरीश्वरजी के उपदेश से भतीजे के नगर लोद्रवा पर चढ़ाई की, युद्ध में भोजदेव मन्दिर निर्माण का कार्य प्रारम्भ होकर वि. सं. 1473 व हजारों योद्धा मारे गये । लोद्रवा जैसलजी के में राउल लक्ष्मणसिंहजी के राज्य काल में रांका गोत्रीय अधिकार में आया । लोद्रवा की जनता भय के कारण श्रेष्ठी श्री जयसिंह नरसिंह द्वारा आचार्य श्री जिनवर्धन
FARPAN
किले पर जिनालयों का दृश्य-जैसलमेर
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