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________________ माना जाता है । श्री सुमतिनाथ भगवान श्वेताम्बर जैन मन्दिर लगभग 1500 वर्ष से पूर्व का माना जाता है । यहाँ की विख्यात प्राचीन कला, प्राचीन हस्त स्वर्ण चित्रकारी आदि प्राचीनता प्रमाणित करते हैं । जिसका वर्णण विश्व की गाईडों में भी हैं अतः विदेश के दर्शनार्थी व छात्र-छात्राएं भी आते रहते हैं । श्री पार्श्वनाथ भगवान दिगम्बर जैन मन्दिर लगभग 800 वर्ष पूर्व का मुगलकालीन ऐतिहासिक बताया जाता है । जिसका निर्माण एक दिगम्बर फोजी भाई द्वारा करवाया जाने का उल्लेख है । यह विशाल व अतिशयकारी प्राचीन मन्दिर है । इसका अन्तिम जीर्णोद्धार सं. 1935 में हुवा तब लाल दिवारें लगायी गई । कहा जाता है कि उसी समय से यह लाल मन्दिर के नाम से जाना जाने लगा । इसके पूर्व यह रेती के कूँचे का मन्दिर, उर्दू मन्दिर व लश्करी मन्दिर के नाम से जाना जाता था । ___कहा जाता है कि औरंगजेब के समय मन्दिर में एक नगाड़ा बजता था जिसे नहीं बजाने के लिये सम्राट ने शाही फरमान जाहिर किया परन्तु नगाड़ा बिना किसी के बजाये ही बजता रहा । यह एक विशिष्ट चमत्कारिक घटना थी । विशिष्टता यह पावन स्थल भगवान नेमिनाथ के समयकालीन प्रभु के परम भक्त श्रमण धर्मोपासक श्री पाण्डवों द्वारा स्थापित राजधानी को आज तक भारत की राजधानी रहने का सौभाग्य प्राप्त हुवा, यह यहाँ की मुख्य विशेषता है । ___प. पुज्य मणिधारी दादागुरुदेव आचार्य भगवंत श्री जिनचन्द्रसूरीश्वरजी का यहाँ समाधी स्थल व उसी प्राचीन अग्नी संस्कार स्थल पर उनके चरण पादुका पूजा-सेवा व दर्शनार्थ प्रतिष्ठित रहने के कारण यहाँ की विशेषता को और भी प्रधानता मिली है । इतने प्राचीन मूल स्थान पर आचार्य गुरुभगवंतों के प्राचीन चरण चिन्ह बहुत ही कम जगह नजर आते है । आज भी दादागुरुदेव प्रत्यक्ष है व यहाँ हजारों भक्तगणों का निरन्तर आवागमन रहता है । आने वाले श्रद्धालु भक्तजनों की मनोकामना पूर्ण होती है । प. पूज्य आचार्य भगवंत श्री जिनप्रभसूरीश्वरजी द्वारा रचित अतीव मशहूर आज भी अतीव उपयोगी श्री “विविध-तीर्थ कल्प" जेसी तीर्थ माला के रचना का यहाँ पर सम्पूर्ण होना भी महत्वपूर्ण विशेषता है । आज भी यह तीर्थ माला प्रमाणिक मानी जाती है ।। अन्य मन्दिर इनके अतिरिक्त श्वेताम्बर मन्दिर व दिगम्बर मन्दिर है । महरोली दादावाड़ी के अतिरिक्त एक और दादा श्री जिनकुशलसुरिश्वरजी दादावाड़ी व आत्म वल्लभ स्मारक गुरु मन्दिर है । इस लाल दिगम्बर मन्दिर में हजार वर्ष प्राचीन प्रतिमाएं दर्शनीय है जिसके दर्शनार्थ यात्री व देश-विदेश के पर्यटक आते रहते हैं । __कला और सौन्दर्य इस श्वे. मन्दिर में स्वर्ण चित्रकारी, हस्तलिखित धार्मिक पुस्तकों का संग्राहलय व अन्य कला आदि तो अतीव दर्शनीय है । महरोली के निकट एवं कुतुब मिनार आदि के पास भी प्राचीन कलात्मक अवशेष नजर आते हैं । कुतुब मिनार में भी कई प्राचीन जैन कला के नमूने नजर आते है । मार्ग दर्शन भारत की राजधानी का शहर होने के कारण भारत में सभी जगह रेल, बस, व हवाई जहाज द्वारा जाने की सुविधा है । विदेश में सभी जगह जाने हेतु हवाई जहाज की सुविधा है । इन श्वे. व दि. मन्दिरों से नई दिल्ली लगभग 3 कि. मी. व पुरानी दिल्ली एक कि. मी दूर है । दोनों मन्दिरों तक पक्की सड़क है । कार, बस व आटो मन्दिर तक जा सकते है । हवाई अड्डा लगभग 20 कि. मी. दूर है । शहर में सभी जगह बस, टेक्सी व आटो की सुविधा है । सुविधाएँ ॐ श्वेताम्बर मन्दिर के निकट सर्वसुविधायुक्त धर्मशाला है । भोजनशाला का निर्माण कार्य चालू हैं । दोनों दादावाड़ियों व आत्म-बल्लभ स्मारक गुरु मन्दिर में भी भोजनशाला सहित धर्मशालाएं है । दिगम्बर मन्दिर के पास भी सर्वसुविधायुक्त धर्मशाला व अतिथी भवन आदि है । दिगम्बर जैन भवन-फव्वारा के पास भोजनशाला है । पेढ़ी 1. श्री सुमतिनाथ भगवान (श्वे.) जैन मन्दिर, श्री जैन श्वे. मन्दिर व पौशाल चेरिटेबल ट्रस्ट, 1997 नौघरा किनारी बाजार, दिल्ली - 110 006. फोन : 011-3270489 2. श्री पार्श्वनाथ दिगम्बर जैन लाल मन्दिर, चाँदनी चौक, दिल्ली - 110006. फोन : 011-3280942. 480
SR No.002331
Book TitleTirth Darshan Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Jain Kalyan Sangh Chennai
PublisherMahavir Jain Kalyan Sangh Chennai
Publication Year2002
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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