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सभा मण्डप का कलात्मक अपूर्व दृश्य देलवाडा (आबू)
सत्ता को अपनी अपूर्व प्रतिभा व कार्यकौशल से अचल कल्याणार्थ विमलवसही के सामने एक भव्य मन्दिर का बनायी थी । इनकी ख्याति हर जगह राजाओं में खूब निर्माण करवाया व मन्दिर का नाम लावण्यवसही रखा, बढ़ गई थी । ये दोनों भ्राता वीर व उदार थे । वस्तुपाल जिसकी प्रतिष्ठा नागेन्द्रगच्छाचार्य श्री विजयसेनसूरि के स्वयं बड़े कवि भी थे । उनको 24 बिरुद प्राप्त हुए सुहस्ते विक्रम सं. 1287 चैत्र कृष्णा 3 के शुभ दिन थे । उनमें से “सरस्वती धर्मपुत्र' भी एक था । सुसंपन्न हुई । इस मन्दिर की कला भी विश्व में इन्होंने शत्रुजय व गिरनार के उद्धार में भी करोड़ों महत्वपूर्ण स्थान रखती है । यहाँ हमेशा हजारों रुपये खर्च किये थे । इनके अलावा अन्य धार्मिक यात्रीगणों की भरमार रहती है । प्रतिवर्ष जेठ शुक्ला कार्यों में, संघ निकलवाने आदि में कुल करोड़ों रुपये पंचमी को सभी मन्दिरों पर ध्वजा चढ़ाई जाती है । खचे किये थे । इन्होंने गुजरात के सोलंकी राजा अन्य मन्दिर यहाँ विमलवसही व लावण्यवसही भीमदेव के महामंडलेश्वर आबू के परमार राजा श्री के अतिरिक्त पितलहरमन्दिर, श्री महावीर भगवान सोमसिंह से अनुमति लेकर 13 करोड़ 53 लाख रुपये
मन्दिर व खरतर वसही मन्दिर हैं । सारे मन्दिर खर्च करके श्री तेजपाल के सुपुत्र लावण्यसिंह के आसपास ही हैं । कुछ दूर एक दिगम्बर मन्दिर भी है।
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