SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 228
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री पार्श्वनाथ भगवान-खरतर वसही श्री ऋषभदेव भगवान-पीतलहर मन्दिर में श्री आनन्दघनजी, वि. सं. 1981 में योगिराज बंधुओं के पुत्र धनसिंह व महणसिंह एवं उनके पुत्रों ने विजयशान्तिसूरीश्वरजी आदि । पुनः जीर्णोद्धार करवाकर विक्रम सं. 1378 ज्येष्ठ श्रुतकेवली श्री भद्रबाहुस्वामीजी द्वारा रचित "बृहत् कृष्णा 9 के दिन श्री ज्ञानचन्द्रसूरिजी के सुहस्ते प्रतिष्ठा कल्प सूत्र" में भी इस तीर्थ का उल्लेख आता है । करवाई । विक्रम सं. 1287 चैत्र कृष्णा 3 के दिन वर्तमान में स्थित यहाँ का सब से प्राचीन मन्दिर मंत्री वस्तुपाल तेजपाल ने 13 करोड़ 53 लाख रुपये खर्च श्री विमलशाह द्वारा विक्रम की 11 वीं सदी में निर्मित करके विमलवसही के सामने ही मन्दिर बनवाकर हुआ था । इससे पूर्व के जैन मन्दिरों का पता नहीं नागेन्द्रगच्छाचार्य श्री विजयसेनसूरिजी के सुहस्ते प्रतिष्ठा लग रहा है । शायद कभी भूकंप में धरातल होकर या करवाई थी इस मन्दिर को लावण्यवसही कहते किसी कारण विच्छिन्न हुए हों । श्री अम्बिकादेवी की। इस मन्दिर को भी विक्रम सं. 1368 में अल्लाउद्दीन श्री विमलशाह द्वारा आराधना करने पर चम्पकवृक्ष के खिलजी द्वारा क्षति पहुंची थी, जिसे तुरन्त ही 10 वर्ष पास यहाँ भूगर्भ से श्री आदिनाथ भगवान की प्राचीन बाद चन्द्रसिंह के पुत्र श्रेष्ठी श्री पेथड़शाह ने जीर्णोद्धार प्रतिमा प्राप्त हुई थी जो लगभग 2500 वर्ष प्राचीन करवाया । इनके अलावा विक्रम सं. 1525 में बताई जाती है, इससे यह तो सिद्ध होता है कि यहाँ अहमदाबाद के सुलतान मेहमूद बेघड़ा के मंत्री सुन्दर प्राचीन काल में जैन मन्दिर थे । और गदा ने पीतलहर मन्दिर का निर्माण करवाया था। वि. सं. 1088 में श्री विमलशाह ने 18 करोड़ एक और खरतर बसही मन्दिर है, जो कारीगरों के 53 लाख रु. खर्च करके मन्दिर निर्मित करवाया व मन्दिर के नाम से जाना जाता है । आचार्य श्री धर्मघोषसूरिजी के सुहस्ते प्रतिष्ठा करवायी विशिष्टता यह एक प्राचीन व महत्वपूर्ण तीर्थ थी, इस मन्दिर को विमलसही कहते हैं । इसका माना गया है। इसका विशिष्ट उल्लेख ऊपर प्राचीनता पुनरुद्धार इनके ही वंशज मंत्री श्री पृथ्वीपाल द्वारा वि. में दिया गया है । जैसे भरत चक्रवर्ती द्वारा श्री सं. 1204-1206 में करवाने का उल्लेख है । विक्रम आदिनाथ भगवान का यहाँ मन्दिर बनवाना, भगवान सं. 1368 में अलाउद्दीन खिलजी द्वारा मन्दिर को क्षति श्री महावीर का इस भूमि में पदार्पण होना अनेकों पहुँची, तब मंडोर निवासी शेठ गोसन व भीमाना मुनियों की तपोभूमि रहना आदि । वर्तमान में कुछ 464
SR No.002331
Book TitleTirth Darshan Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Jain Kalyan Sangh Chennai
PublisherMahavir Jain Kalyan Sangh Chennai
Publication Year2002
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy