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________________ प्रतिमाओं पर मेवाड़ के डुंगरपुर नरेश श्री सोमदास के सारे गुरुदेव के चरणों में साष्टांग नमस्कार करने प्रधान, ओशवाल श्रेष्ठी श्री साल्हाशाह द्वारा आयोजित लगे । सब सजेधजे होकर भी उन्हें अपने वस्त्रों का समारोह में वि. सं. 1518 वैशाख कृष्णा 4 के दिन भान न रहा. इतनी भक्ति थी उनमें । स्वामीजी लिखते श्री लक्ष्मीसागरसूरिजी के सुहस्ते प्रतिष्ठा हुए का लेख है कि उस वक्त का दृश्य फोटो लेने योग्य था, परन्त उत्कीर्ण है । पश्चिम दिशा में विराजित श्री आदिनाथ । केमरा नहीं था । गुरुदेव ने अनेकों राजाओं से शिकार प्रभ की प्रतिमा पर इंगरपुर निवासी श्रेष्ठी श्री साल्हा व माँस मन्दिरा का त्याग करवाया था । विक्रम सं. शाह वगैरह श्रावकों द्वारा विक्रम सं. 1529 में श्री 1999 के आसोज कृष्ण पक्ष 10 को गुरुदेव अचलगढ़ लक्ष्मीसागरसूरिजी के सुहस्ते प्रतिष्ठा होने का उल्लेख में कुथुनाथजी के मन्दिर के पास एक कमरे में देवलोक है । मूलनायक भगवान के दोनों बाजू खड्गासन की । सिधारे । वहाँ आज भी वह पाट विद्यमान है, जिसपर प्रतिमाओं पर वि. सं. 1134 के लेख उत्कीर्ण है, इन उनका स्वर्गवास हुआ था । लेखों के अनुसार सांचोर में श्री महावीर भगवान के उनकी देह श्री मान्डोली नगर ले जायी गयी व मन्दिर के लिए ये प्रतिमाएँ बनी थीं । इस मन्दिर के अग्नि संस्कार वहाँ हुआ जहाँ भव्य मन्दिर बना हुआ है। दूसरी मंजिल में सर्व धातु की चौमुख प्रतिमाजी अन्य मन्दिर इसके अतिरिक्त वर्तमान में 3 विराजित हैं, जिनमें पूर्व दिशा में विराजित प्रतिमा मन्दिर (श्री आदिनाथ भगवान, श्री शान्तिनाथ भगवान, अलौकिक मुद्रा में अत्यन्त सुन्दर व प्रभावशाली है । श्री कुंथुनाथ भगवान के) और हैं । ये भी प्राचीन हैं। इस पर कोई लेख उत्कीर्ण नहीं है । यह प्रतिमा इनके अलावा श्री कुंथुनाथ भगवान के मन्दिर के पास लगभग 2100 वर्ष प्राचीन मानी जाती है । संभवतः आबू के योगीराज विजय शान्तिसूरीश्वरजी के स्वर्गस्थल यह प्रतिमा पहिले मूलनायक रही होगी । अतः यहाँ में पाट पर विशाल फोटो दर्शनार्थ रखा हुआ है । हाल भी देलवाड़ा की भांति प्राचीन मन्दिर रहे होगें । ही में कुछ वर्षों पूर्व गुरु मन्दिर का निर्माण हुवा है। विशिष्टता यहाँ पर धातु की कुल 18 अम्बा माता के प्रावीन मन्दिर का भी जीर्णोद्धार हुवा प्रतिमाएँ हैं व उनका वतन 1444 मन कहा जाता है। है । यहाँ से लगभग 3 कि. मी. दूर गुरु शिखर है, इन प्रतिमाओं की चमक व वर्ण से प्रतीत होता है कि जो कि अरावली पर्वत की उच्चतम चोटी मानी जाती इनमें सोने का अंश ज्यादा है। इतनी विशालकाय धातु है । वहाँ पर एक देरी में श्री आदीश्वर भगवान के की प्रतिमाएँ अन्यत्र नहीं है । इन प्रतिमाओं का चरण स्थापित हैं । डुंगरपुर के कारीगरों द्वारा बनाया माना जाता है । कला और सौन्दर्य यहाँ का प्राकृतिक दृश्य राजा कुंभा द्वारा विक्रम सं. 1509 में निर्मित इस दुर्ग अति मनलुभावना है । मन्दिर से चारों तरफ का दृश्य में विध्वंस महल भी है । आबू के योगीराज विजय ऐसा लगता है जैसे स्वर्ग लोक में खड़े हैं, बहुत ही शान्तिसूरीश्वरजी की अंतिम तपोभूमि व स्वर्ग भूमि भी शान्ति का वातावरण है । मुख्य मन्दिर में धातुकी बनी यही है । यहाँ जंगलों में उन्होंने घोर तपस्या की थी। चारों प्रतिमाएँ अलग अलग समय की होने पर भी मुख्य मन्दिर के पास एक कमरा है, जहाँ प्रायः वे रहा ऐसा प्रतीत होता है जैसे एक ही साथ निर्मित हुई हो। करते थे । उनके अनेकों राजा अनुयायी थे । इस प्रकार की कलात्मक धातु प्रतिमाएँ अन्यत्र नहीं है। श्री पुडल तीर्थोद्धारक आत्मानुरागी स्वामी श्री इस मन्दिर के दूसरी मंजिल में पूर्व दिशा में विराजित रिखबदासजी द्वारा रचित 'आबू के योगीराज' पुस्तक में अलौकिक धातु प्रतिमाकी सुन्दरता का तो जितना अनेकों चमत्कारिक व अलौकिक घटनाओं का आँखों वर्णन करें कम हैं । शायद विश्व में भी इतनी सुन्दर देखा वर्णन है । उनमें एक वर्णन यह भी है कि भावात्मक प्राचीन प्रतिमाएँ कम जगह होगी । श्री एक वक्त योगीराज अचलगढ़ विराजते थे, जब स्वामीजी कुंथुनाथ भगवान की प्रतिमा कांसे से निर्मित है, जो भी पास थे । 22 रजवाड़ों के नरेश व राजकुमार आदि । कि प्रायः कम पायी जाती है । इनके अलावा सिरोही के राजकुमार की शादी करके दर्शनार्थ आये । मन्दाकिनी कुण्ड, भर्तृहरी व गोपीचन्द गुफा, भृगु दरवाजा बन्द था । सारे राजा व राजकुमार दर्शन की आश्रम, तीर्थ विजय आश्रम आदि दर्शनीय स्थल है । प्रतीक्षा कर रहे थे । ज्यों ही दरवाजा खुला,सारे के 460
SR No.002331
Book TitleTirth Darshan Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Jain Kalyan Sangh Chennai
PublisherMahavir Jain Kalyan Sangh Chennai
Publication Year2002
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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