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श्री अचलगढ़ तीर्थ
द्वारा श्री महावीर भगवान का मन्दिर निर्मित करवाने का उल्लेख है । हो सकता है जीर्णोद्धार के समय
प्रतिमा परिवर्तित की गयी हो । पहाड़ के ऊंचे शिखर तीर्थाधिराज श्री आदीश्वर भगवान, श्वर्ण पर श्री आदिनाथ भगवान के जग विख्यात चौमुखी वर्ण, धातु प्रतिमा, पद्मासनस्थ, लगभग 1.50 मीटर मन्दिर का निर्माण राणकपुर तीर्थ के निर्माता शेठ श्री (श्वे. मन्दिर) ।
धरणाशाह के बड़े भाई रत्नाशाह के पौत्र शूरवीर, तीर्थ स्थल अरावली के अबूंदाचल पर्वत की
दानवीर, एवं बादशाह गयासुद्दीन के प्रधान मंत्री श्री
दानवार, एव बादशाह गयासुद्दान उच्चतम चोटी पर राणा कुंभा द्वारा निर्मित किले में, सहसाशाह ने आचार्य श्री सुमतिसूरिजी से प्रेरणा पाकर जहाँ की ऊँचाई समुद्र की सतह से 4600 फुट है । उस वक्त यहाँ के महाराजा श्री जगमाल से अनुमति प्राचीनता अचलगढ़ भी अर्बुदगिरि का अंग
लेकर करवाया था । विक्रम सं. 1566 फाल्गुन शुक्ला रहने के कारण इसकी प्राचीनता भी आबू तीर्थ के
10 के दिन श्री आदिनाथ भगवान के विशालकाय समान है । वर्तमान मन्दिरों में अचलगढ़ की तलेटी के
(120 मण) घातु प्रतिमा की प्रतिष्ठा आचार्य श्री पास छोटी टेकरी पर श्री शान्तिनाथ भगवान का मन्दिर
जयकल्याणसूरिजी के सुहस्ते सुसंपन्न हुई थी । यह सबसे प्राचीन है, जो कि श्री कुमारपाल राजा द्वारा
वर्णन 'गुरु गुण रत्नाकर' काव्य, शीलविजयजी कृत निर्मित बताया जाता है । इसका उल्लेख 'विविध तीर्थ
'तीर्थ माला' आदि में उल्लिखित हैं । इसी मन्दिर में कल्प' व 'अर्बुदगिरि कल्प' में आता है,लेकिन कुमारपाल
पूर्व दिशा में विराजित श्री आदीश्वर भगवान व दक्षिण दिशा में विराजित श्री शान्तिनाथ भगवान की
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तीर्थाधिराज श्री आदिनाथ भगवान मन्दिर-अचलगढ़
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