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श्री मंडार तीर्थ
तीर्थाधिराज श्री महावीर भगवान, श्वेत वर्ण, पद्मासनस्थ, लगभग 120 से. मी. (श्वे. मन्दिर)।
तीर्थ स्थल मन्डार गाँव के मन्दिर की सेरी में ।
प्राचीनता 8 प्राचीन शिलालेखों में इस गाँव का महाहृद व महाहड नामों से उल्लेखित किया है ।।
प्रकाण्ड विद्वान आचार्य श्री वादीदेवसूरीश्वरजी का जन्म इसी गाँव में वि. सं. 1143 में हुआ था । वि. सं. 1287 में आबू देलवाड़ा के लावण्यवसहि मन्दिर के वार्षिक महोत्सव हेतु कमेटी बनायी थी जिसमें इस गाँव का नाम भी शामिल था । __वि. सं. 1499 में श्री मेघ कवि द्वारा रचित 'तीर्थ-माला' में यहाँ के श्री महावीर भगवान के मन्दिर का उल्लेख है । उक्त महावीर भगवान का मन्दिर किसी समय भूकंप आदि के झपेटों में आकर भूगर्भ में समा गया होगा, ऐसा प्रतीत होता है । वर्तमान मूलनायक श्री महावीर भगवान की विशाल काय प्रतिमा व अन्य दो कायोत्सर्ग मुद्रा में श्री पार्श्वनाथ भगवान व श्री विमलनाथ भगवान की प्रतिमाएँ (श्री विमलनाथ भगवान की प्रतिमा पर वि. सं. 1259 का लेख है) गाँव के बाहर एक टेकरी के निकट जमीन में से प्राप्त हुई थी । संभवतः यह वही प्रतिमा है जिसका श्री मेघ कवि ने अपने तीर्थ माला में उल्लेख किया है । यहाँ पर पुनः मन्दिर निर्माण का कार्य करवाकर वि. सं. 1920 में चरम तीर्थंकर वीर प्रभु की उस प्राचीन अलौकिक प्रतिमा को पुनः प्रतिष्ठित करवाया गया । अभी मन्दिर के पुनः जीर्णोद्धार का कार्य चालू
श्री विमलनाथ भगवान-मंडार
विशिष्टता सुप्रख्यात प्रकाण्ड विद्वान आचार्य श्री वादीदेवसूरीश्वरजी की यह जन्म भूमि है । श्री 'महाहृतगच्छ' का उत्पत्ति स्थान भी यही है ।
गाँव के बाहर जगह-जगह अनेकों खण्डहर अवशेष बिखरे हुए दिखायी देते हैं । इससे प्रतीत होता है किसी समय यह एक विराट नगरी रही होगी व यहाँ अनेकों जिन मन्दिर रहे होंगे । यहाँ के श्रेष्ठियों द्वारा भी जगह-जगह धार्मिक कार्यो में भाग लेने का उल्लेख
श्री महावीर भगवान मन्दिर-मंडार